भारतीय इतिहास के कुछ महापुरुषों की आत्मनिर्भरता पर प्रकाश डालिए
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आधुनिक भारत का इतिहास स्पष्टतः दो भागों में बँटा है। 1857 का सैनिक विद्रोह अपने पीछे जिस पृष्ठभूमि को रखे हुए है वही पुस्तक के पहले भाग की विषय-वस्तु है। इसका आरम्भ डच, पुर्तगाली, अंग्रेजी, फ्रांसीसी-इन सभी विदेशियों के भारत-आगमन से होता है। यह बात शुरू में ही साफ हो गई थी कि सफलता अंग्रेजों के हाथ लगेगी और उसके कारण स्पष्ट थे। वे राष्ट्रवाद में विश्वास रखते थे जबकि भारत में न यह भावना थी और न अनुशासन। युद्ध-कौशल तथा रणनीति में अंग्रेज भारतीयों की अपेक्षा कहीं आगे थे। भारतीय सैनिक अपने राजाओं के प्रति निष्ठावान नहीं थे। इन्हीं सब बातों से भारतीयों का अपनी भूमि पर ही पतन हुआ। उधर अंग्रेजों के सामने नैतिकता जैसी कोई चीज नहीं थी। बंगाल, अवध, मैसूर महाराष्ट्र, पंजाब और सिंध इन सभी का विलय अंग्रेजी साम्राज्य में हो गया। जो भी अंग्रेज शासक आये चाहे वह वारेन हेस्टिंग्स हो या लार्ड कार्नवालिस, लार्ड वैलेजली हो या लार्ड हेस्टिंग्स लार्ड विलियम बैंटिंक हो या लार्ड डलहौजी सभी ने शासकीय सुधारों पर बल दिया।
भारतीय समाज अनेक कुरीतियों का शिकार था। जाति-प्रथा, बाल-वध, बाल-विवाह, सती-प्रथा, विधवा विवाह-निषेध आदि के कारण भारतीय समाज खोखला हो रहा था। अपनी अंधविश्वासी परम्परा एवं रीति-रिवाजों के घेरे में पड़े भारतीय आधुनिकता से सर्वथा अपरिचित थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने शुरू में तो भारतीय समाज के मामले में तटस्थता की नीति अपनायी परन्तु 13 वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में अंग्रेज भारतीय समाज में सुधार लाने की सोचने लगे। भारत के प्रति सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाने के पीछे जो भी कारण रहे हों, परन्तु इससे भारत में पुनर्जागरण का मार्ग खुला। सामाजिक कानून बनाने का क्रम शुरू हुआ बाल-वध, विधवा विवाह-निषेध, नर बलि, सती प्रथा आदि ऐसी बातें थीं जिनके निवारण में सरकार को राजा राममोहन राय तथा ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जैसे भारतीय नेताओं का सहयोग भी मिला।
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