भारतीय इतिहास में शिवाजी के योगदान की चर्चा करे
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शिवाजी महान् विजेता होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक भी थे। उनकी प्रशासनिक व्यवस्था काफ़ी कुछ दक्षिणी राज्यों एवं मुग़ल प्रशासन से प्रभावित थी। मध्यकालीन शासकों की तरह शिवाजी के पास भी शासन के सम्पूर्ण अधिकार सुरक्षित थे। शासन कार्यों में सहायता के लिए शिवाजी ने मंत्रियों की एक परिषद, जिसे 'अष्टप्रधान' कहते थे, की व्यवस्था की थी, पर इन्हें किसी भी अर्थ में मंत्रिमंडल की संज्ञा नहीं दी सकती थी। ये मंत्री 'सचिव' के रूप में कार्य करते थे। वह प्रत्यक्ष रूप में न तो कोई निर्णय ले सकते थे और न ही नीति निर्धारित कर सकते थे। उनकी भूमिका मात्र परामर्शकारी होती थी, किन्तु मंत्रियों से परामर्श के लिए शिवाजी बाध्य नहीं थे।
शिवाजी के अष्टप्रधान का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
पेशवा - यह राज्य के प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था की रेख-देख करता था तथा राजा की अनुपस्थिति में राज्य की बागडोर संभालता था। उसका वेतन 15,000 हूण प्रतिवर्ष था।
सर-ए-नौबत (सेनापति) - इसका मुख्य कार्य सेना में सैनिकों की भर्ती करना, संगठन एवं अनुशासन और साथ ही युद्ध क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती आदि करना था।
मअमुआदार या अमात्य - अमात्य राज्य के आय-व्यय का लेखा जोखा तैयार करके उस पर हस्ताक्षर करता था। उसका वेतन 12,000 हूण प्रतिवर्ष था।
वाकयानवीस - यह सूचना, गुप्तचर एवं संधि विग्रह के विभागों का अध्यक्ष होता था और घरेलू मामलों की भी देख-रेख करता था।
शुरुनवीस या चिटनिस - राजकीय पत्रों को पढ़ कर उनकी भाषा-शैली को देखना, परगनों के हिसाब-किताब की जाँच करना आदि इसके प्रमुख कार्य थे।
दबीर या सुमन्त (विदेश मंत्री) - इसका मुख्य कार्य विदेशों से आये राजदूतों का स्वागत करना एवं विदेशों से सम्बन्धित सन्धि विग्रह की कार्यवाहियों में राजा से सलाह और मशविरा आदि प्राप्त करना था।
सदर या पंडितराव - इसका मुख्य कार्य धार्मिक कार्यों के लिए तिथि को निर्धारित करना, ग़लत काम करने एवं धर्म को भ्रष्ट करने वालों के लिए दण्ड की व्यस्था करना, ब्राह्मणों में दान को बंटवाना एवं प्रजा के आचरण को सुधारना आदि था। इसे 'दानाध्यक्ष' भी कहा जाता था।
न्यायधीश - सैनिक व असैनिक तथा सभी प्रकार के मुकदमों को सुनने एवं निर्णय करने का अधिकार इसके पास होता था।
शिवाजी के अष्टप्रधान का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
पेशवा - यह राज्य के प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था की रेख-देख करता था तथा राजा की अनुपस्थिति में राज्य की बागडोर संभालता था। उसका वेतन 15,000 हूण प्रतिवर्ष था।
सर-ए-नौबत (सेनापति) - इसका मुख्य कार्य सेना में सैनिकों की भर्ती करना, संगठन एवं अनुशासन और साथ ही युद्ध क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती आदि करना था।
मअमुआदार या अमात्य - अमात्य राज्य के आय-व्यय का लेखा जोखा तैयार करके उस पर हस्ताक्षर करता था। उसका वेतन 12,000 हूण प्रतिवर्ष था।
वाकयानवीस - यह सूचना, गुप्तचर एवं संधि विग्रह के विभागों का अध्यक्ष होता था और घरेलू मामलों की भी देख-रेख करता था।
शुरुनवीस या चिटनिस - राजकीय पत्रों को पढ़ कर उनकी भाषा-शैली को देखना, परगनों के हिसाब-किताब की जाँच करना आदि इसके प्रमुख कार्य थे।
दबीर या सुमन्त (विदेश मंत्री) - इसका मुख्य कार्य विदेशों से आये राजदूतों का स्वागत करना एवं विदेशों से सम्बन्धित सन्धि विग्रह की कार्यवाहियों में राजा से सलाह और मशविरा आदि प्राप्त करना था।
सदर या पंडितराव - इसका मुख्य कार्य धार्मिक कार्यों के लिए तिथि को निर्धारित करना, ग़लत काम करने एवं धर्म को भ्रष्ट करने वालों के लिए दण्ड की व्यस्था करना, ब्राह्मणों में दान को बंटवाना एवं प्रजा के आचरण को सुधारना आदि था। इसे 'दानाध्यक्ष' भी कहा जाता था।
न्यायधीश - सैनिक व असैनिक तथा सभी प्रकार के मुकदमों को सुनने एवं निर्णय करने का अधिकार इसके पास होता था।
sakshi452:
थैंक्स आ लाट aur kuch
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