Hindi, asked by Palp5029, 1 year ago

भारतीय जनता की एकता के असली आधार का वर्णन कीजिए

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Answered by dackpower
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भारतीय जनता की एकता

Explanation:

आज, बड़ी संख्या में युवाओं के पास इस देश के लिए अद्भुत विचार हैं। युवा यह मानने को तैयार है कि हम इसे काम कर सकते हैं। मैं उनमें से एक हूं, 'मालविका भाटिया कहती हैं, जो भारत के युवाओं के बीच मतदाता उदासीनता को दूर करने के उद्देश्य से एक गैर-लाभकारी संगठन के लिए काम करती हैं।

शायद भारत की सबसे बड़ी गुणवत्ता इसकी अत्यधिक विविधता के बावजूद पनपने की क्षमता है।

इसमें संदेह के बिना दुनिया का कोई दूसरा देश नहीं है, जिसमें भारत जैसी विविध संस्कृतियां हों। मुंबई जैसे शहर संस्कृति के सच्चे पिघलाने वाले बर्तन हैं जहाँ प्रत्येक अपनी पहचान को बनाए रखता है फिर भी एक पूरा बनाने के लिए एक साथ आता है।

मतभेदों के बावजूद मेरा मानना ​​है कि हम भारत की धारणा से एकजुट हैं, जिस पर हमें गर्व है, वह जो हमें अधिक अच्छे की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करता है।

निश्चित रूप से, हमारे साझा इतिहास, औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ हमारा संघर्ष है जो हमें एक साथ बांधता है और हमें जागरूक करता है और हमारे मतभेदों के बावजूद, कोने के आसपास एक बड़ी समस्या है जो हमें हल करने के लिए एक साथ होने की आवश्यकता है।

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"एकता का महत्व" अनुच्छेद

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Answered by krishna210398
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Answer:

भारतीय जनता की एकता के असली आधार

Explanation:

जदुनाथ सरकार तथा हरबर्ट रिजेल आदि विद्वानों का मत है कि भारत में परस्पर विरोधी विचारों, सिधान्तों भाषाओं, रहन-सहन के ढंगों, अचार-विचार तथा वस्त्रों एवं खाद्यानो आदि बहुत से बातों में विभिन्नता के होते हुए भी जीवन की एकता पाई जाती है। इस एकता का आधार में विभिन्नता के होते हुए भी जीवन की एकता पाई जाति है।

जब किसी समाज में सारे व्यक्ति किसी निर्दिष्ट भौगोलिक सीमा के अन्दर अपने पारस्परिक भेद-भावों को भुलाकर सामूहीकरण की भावना से प्रेरित होते हुए एकता के सूत्र बन्ध जाते हैं तो उसे राष्ट्र के नाम से पुकारा जाता है। राष्ट्रवादीयों का मत है – “ व्यक्ति राष्ट्र के लिए है राष्ट्र व्यक्ति के लिए नहीं “ इस दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति अपने राष्ट्र का अभिन्न अंग होता है। राष्ट्र से अलग होकर उसका कोई अस्तित्व नहीं होता है। अत: प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह राष्ट्र की दृढ़ता तथा अखंडता को बनाये रखने में पूर्ण सहयोग प्रदान करे एवं राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिए राष्ट्रीयता की भावना परम आवश्यक है। वस्तुस्थिति यह है कि राष्ट्रीयता एक ऐसा भाव अथवा शक्ति है जो व्यक्तियों को अपने व्यक्तिगत हितो को त्याग कर राष्ट्र कल्याण के लिए प्रेरित करती है। इस भावना की विकसित हो जाने से राष्ट्र की सभी छोटी तथा बड़ी सामाजिक इकाइयां अपनी संकुचती सीमा के उपर उठकर अपने आपको समस्त राष्ट्र का अंग समझने लगती है। स्मरण रहे कि राष्ट्रीयता तथा देशप्रेम का प्राय: एक ही अर्थ लगा लिया जाता है। यह उचित नहीं है। देश प्रेम की भावना तो पर्चिन काल से ही पाई जाती है परन्तु रस्थ्रियता की भावना का जन्म केवल 18 वीं शताबदी में फ़्रांस की महान क्रांति के पश्चात ही हुआ है। देश-प्रेम का अर्थ उस स्थान से प्रेम रखना है जहाँ व्यक्ति जन्म लेता है। इसके विपरीत राष्ट्रीयता एक उग्र रूप का सामाजिक संगठन है जो एकता के सूत्र में बन्धकर सरकार की नीति को प्रसारित करता है। यही नहीं, राष्ट्रीयता का अर्थ केवल राज्य के प्रति अपार भक्ति ही नहीं अपितु इसका अभिप्राय राज्य तथा उसके धर्म, भाषा, इतिहास तथा संस्कृति में भी पूर्ण श्रद्दधा रखना है। संक्षेप में राष्ट्रीयता का सार – राष्ट्र के प्रति आपार भक्ति, आज्ञा पालान तथा कर्तव्यपरायणता एवं सेवा है। ब्रबेकर ने राष्ट्रीयता की व्याख्या करते हुए लिखा है – “ राष्ट्रीयता शब्द की प्रसिद्धि पुनर्जागरण तथा विशेष रूप से फ़्रांस की क्रांति के पश्चात  हुई है। यह साधारण रूप से देश-प्रेम की अपेक्षा देश-भक्ति से अधिक क्षेत्र की ओर संकेत करती है। राष्ट्रीयता में स्थान के सम्बन्ध के अतिरिक्त प्रजाति, भाषा तथा संस्कृति एवं परमपराओं के भी सम्बन्ध आ जाते हैं।”

#SPJ3

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