भारतीय कृषक कानून 2020 की सार्थकता
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पहला कानून जिसका नाम 'कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020' है, यह कानून निकट भविष्य में सरकारी कृषि मंडियों की प्रासंगिकता को शून्य कर देगा. सरकार निजी क्षेत्र को बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी जवाबदेही के कृषि उपज के क्रय-विक्रय की खुली छूट दे रही है. इस कानून की आड़ में सरकार निकट भविष्य में खुद बहुत अधिक अनाज न खरीदने की योजना पर काम कर रही है. सरकार चाहती है कि अधिक से अधिक कृषि उपज की खरीदारी निजी क्षेत्र करें ताकि वह अपने भंडारण और वितरण की जवाबदेही से बच सके.
सोचिए कि अगर निकट भविष्य में कभी कोरोना जैसी विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ा तो उस दौरान सरकार खुद लोगों को बुनियादी खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिए निजी क्षेत्र से खरीदारी करेगी. वहीं, आज वह इसे अपने बड़े एफसीआई गोदामों से लोगों को मुफ्त में उपलब्ध करा रही है.
शर्तों पर खड़ा किया जाने वाला नया बाजार इनकी प्रासंगिकता को खत्म कर देगा और जैसे ही सरकारी मंडियों की प्रासंगिकता खत्म होगी, ठीक उसी के साथ एमएसपी का सिद्धांत भी प्रभावहीन हो जाएगा क्योंकि मंडियां एमएसपी को सुनिश्चित करती हैं.
दूसरा कानून 'कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020' है, जिसकी अधिक चर्चा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के विवाद में समाधान के मौजूदा प्रावधानों के संदर्भ में की जा रही है.