भारतीय कुटुंब
व्यवस्था हिन्दी
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bharatiy kutumb vyavasta main kuch niyam hai jaise ki 2se jyada bacche nahi chahiye aur about aise kaye hai jaime bharat ki looksakhy
a ka vicar kya gayatri hai
ab is sabhi niyamo la palane karana sakti ka hot gaya hai jo is
niyamo ka palan nahi karta use jurmana bharna hota hai
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत जैसी कुटुंब व्यवस्था दुनिया के किसी देश में नहीं है और अब ये विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत है क्योंकि कुटुंब में जोड़ने की ताकत है. उन्होंने कहा कि मातृशक्ति के बिना भारत न अपने परम वैभव को पा सकता है, न ही विश्व को परम वैभव पर ले जा सकता है. सरसंघचालक जी ने दिल्ली में राष्ट्र सेविका समिति के तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रेरणा शिविर (कार्यकर्ता शिविर) का उद्घाटन करते हुए मातृशक्ति एवं परिवार के संस्कारों पर विशेष बल दिया. संपूर्ण हिन्दू समाज के विकास के लिए पुरुषों के साथ महिलाएं भी आगे आएं. प्राचीन काल से ही हमारे समाज में मातृशक्ति का अलग महत्व रहा है. जागृत मातृशक्ति के सहयोग के बिना किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं लाया जा सकता.
उन्होंने कहा कि धर्म का संबंध ईश्वर से नहीं है, ईश्वर का संबंध तो मोक्ष से है. धर्म एक दूसरे को जोड़ने वाला, सबको आचरण से ऊपर उठाने वाला, सबको साथ लेकर चलने वाला होता है. भारत जियो और जीने दो की परंपरा को मानने वाला है, इसलिए आज जी एकजुट है. धर्म ने इस एकजुटता को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वर्तमान समस्याओं पर सरसंघचालक जी ने कहा कि जिस देश के लोग समुद्र लांघकर दूसरे देश में जाने को भी समस्या समझते थे. आज उस देश के लोग मंगल पर जा रहे हैं. लेकिन, साथ ही विज्ञान और प्रगति के कारण पर्यावरण की समस्याएं जन्म ले रही हैं. पूरी दुनिया आज पर्यावरण की चिंता कर रही है. दुनिया भर में पर्यावरण को बचाने के लिए उसमें केवल समीक्षा होती है. लेकिन, सम्मेलनों में जो तय किया जाता है वो पूरा होता है क्या? उन्होंने सुझाव दिया कि अब मनुष्य को अपने छोटे-छोटे स्वार्थ छोड़ने पड़ेंगें, क्योंकि स्वार्थ ही मनुष्य के विनाश का सबसे बड़ा कारण है. मनुष्य अपने आप को सृष्टि का स्वामी मानने लगा है. सृष्टि से हमारे संबंध एक उपभोक्ता के संबंध बन गए हैं और यही फाल्ट लाइन मनुष्य को गर्त की ओर ले जा रही है.
पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने पर कहा कि समस्या कुछ दिन की है. जल्द ही ऐसा समय आएगा, जब सब कुछ कैशलैस हो जाएगा और हमें नोट की जरूरत ही नहीं होगी. यह नियम है कि पुरानी तकनीक खत्म होती जाती है और नई तकनीक उसका स्थान लेती जाती है. उन्होंने कहा कि विश्व के हर देश ने अपने विकास के लिए किसी न किसी का विनाश किया है. वे मानते हैं कि जो मेरे जैसे नहीं है, वे मेरे नहीं हैं. इसी को आइएस जैसे आतंकी संगठन भी मानते हैं, यही कारण है कि आज चारों ओर अशांति फैली हुई है. बढ़ती कट्टरता और आतंकवाद के कारण मनुष्य ही मनुष्य का जानी-दुश्मन बन गया है. आतंकवाद पर चर्चा करने में ऐसे लोग और देश भी शामिल हैं जो आतंकवाद को बढ़ावा और प्रश्रय दे रहे हैं.
लेकिन भारत विविधता में एकता को मानता है, यहां स्वीकार्यता और सम्मान को प्रमुखता दी जाती है, यह हमारे सनातन धर्म से हमें मिला है. यह विश्व में शांति का एक मात्र रास्ता है. और इसके लिए ऐसे प्रेरणा व चितंन शिविरों की जरूरत है.
राष्ट्र सेविका समिति ने अपनी स्थापना के 80 वर्ष पूरे होने के अवसर पर दिल्ली में तीन दिन के प्रेरणा शिविर का आयोजन किया है. जिसमें भारत के कोने-कोने से लगभग 3000 सेविकाएं हिस्सा ले रहीं हैं. दिल्ली के छत्तरपुर में एक लघु भारत की झलक देखी जा सकती है. जहां लद्दाख से लेकर केरल तक और सौराष्ट्र से लेकर अरुणाचल तक की संस्कृतियों का अनूठा संगम देखने को मिल रहा है. सेविकाएं अपने-अपने राज्यों की पारंपरिक वेश-भूषाओं में नजर आ रही हैं.
उद्घाटन समारोह में जैन मुनिश्री जयंत कुमार जी भी उपस्थित थे. उन्होंने कहा कि संघ और जैन धर्म त्याग की राह पर चलते हुए समाज और देश के लिए सराहनीय कार्य कर रहें हैं और ये एक नदी के दो किनारे समान हैं. त्याग ही भारतीय सोच का मूल है. उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि ज्यादातर सत्ताधारी लोग पहले अपना स्वार्थ, फिर पार्टी का स्वार्थ और अंत में राष्ट्रहित के बारे में सोचते हैं. लेकिन सबसे पहले देश हित आना चाहिए.
राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय महासचिव सीता अन्नदानम् ने सेविका समिति की 80 वर्ष की गौरवमयी यात्रा को बहुत संक्षेप में रखा और गतिविधियों का लेखा-जोखा भी दिया. उद्घाटन समारोह में अनेक जानी-मानी महिलाएं विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थीं, जिनमें गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा जी, पंजाब केसरी समूह की निदेशिका किरण चोपड़ा जी और अनेक केंद्रीय मंत्रियों की पत्नियां भी उपस्थित रहीं.
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