Political Science, asked by meenashivan97, 2 months ago

भारतीय पुनर्जागरण पर एक लेख लिखिए​

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पुनर्जागरण

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पुनर्जागरण (Renaissance in Europe) का शाब्दिक अर्थ होता है, “फिर से जागना”। 14वीं और 17वीं सदी के बीच यूरोप में जो सांस्कृतिक व धार्मिक प्रगति, आंदोलन तथा युद्ध हुए उन्हें ही पुनर्जागरण कहा जाता है। इसके फलस्वरूप जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नवीन चेतना आई। यह आन्दोलन केवल पुराने ज्ञान के उद्धार तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इस युग में कला, साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में नवीन प्रयोग हुए। नए अनुसंधान हुए और ज्ञान-प्राप्ति के नए-नए तरीके खोज निकाले गए। इसने परलोकवाद और धर्मवाद के स्थान पर मानववाद को प्रतिष्ठित किया।

पुनर्जागरण वह आन्दोलन था जिसके द्वारा पश्चिम के राष्ट्र मध्ययुग से निकलकर आधुनिक युग के विचार और जीवन-शैली अपनाने लगे. यूरोप के निवासियों ने भौगोलिक, व्यापारिक, सामजिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्रों में प्रगति की. इस युग में लोगों ने मध्यकालीन संकीर्णता छोड़कर स्वयं को नयी खोजों, नवीनतम विचारों तथा सामाजिक, सांस्कृतिक एवं बौद्धिक उन्नति से सुसज्जित किया. प्रत्येक क्षेत्र में सर्वथा नवीन दृष्टिकोण, आदर्श और आशा का संचार हुआ. साहित्य, कला, दर्शन, विज्ञान, वाणिज्य-व्यवसाय, समाज और राजनीति पर से धर्म का प्रभाव समाप्त हो गया. इस प्रकार पुनर्जागरण उस बौद्धिक आन्दोलन का नाम है जिसने रोम और यूनान की प्राचीन सभ्यता-संस्कृति का पुनरुद्धार कर नयी चेतना को जन्म दिया।

कुस्तुनतुनिया का पतन :- 1453 ई. में उस्मानी तुर्कों ने कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया. कुस्तुनतुनिया ज्ञान-विज्ञान का केंद्र था. तुर्कों की विजय के बाद कुस्तुनतुनिया के विद्वान् भागकर यूरोप के देशों में शरण लिए. उन्होंने लोगों का ध्यान प्राचीन साहित्य और ज्ञान की ओर आकृष्ट किया. इससे लोगों में प्राचीन ज्ञान के प्रति श्रद्धा के साथ-साथ नवीन जिज्ञासा उत्पन्न हुई. यही जिज्ञासा पुनर्जागरण (Renaissance in Europe) की आत्मा थी. कुस्तुनतुनिया के पतन का एक और महत्त्वपूर्ण प्रभाव हुआ. यूरोप और पूर्वी देशों के बीच व्यापार का स्थल मार्ग बंद हो गया. अब जलमार्ग से पूर्वी देशों में पहुँचने का प्रयास होने लगा. इसी क्रम में कोलंबस, वास्कोडिगामा और मैगलन ने अनेक देशों का पता लगाया।

प्राचीन साहित्य की खोज:-

तेरहवीं तथा चौदहवीं शताब्दी में विद्वानों ने प्राचीन साहित्य को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया. इनमें पेट्रार्क (Petrarch), दांते (Dante Alighieri), और बेकन के नाम उल्लेखनीय है. विद्वानों ने प्राचीन ग्रन्थों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया और लोगों को गूढ़ विषयों से परिचित कराने का प्रयास किया, पेट्रार्क की लेखनी के चलते ही उन्हे मानववाद का पिता कहा गया।

मानववादी विचारधारा का प्रभाव:- यूरोप की मध्यकालीन सभ्यता कृत्रिमता और कोरे आदर्श पर आधारित थी. सांसारिक जीवन को मिथ्या बतलाया जाता था. यूरोप के विश्वविद्यालयों में यूनानी दर्शन का अध्ययन-अध्यापन होता था. रोजर बेकन (Roger Bacon) ने अरस्तू की प्रधानता का विरोध किया और तर्कवाद के सिद्धांत (the principle of rationalism) का प्रतिपादन किया. इससे मानववाद का विकास हुआ. मानववादियों ने चर्च और पादरियों के कट्टरता की आलोचना की।

धर्मयुद्ध का प्रभाव :-

लगभग दो सौ वर्षों तक पूरब और पश्चिम के बीच धर्मयुद्ध चला. धर्मयुद्ध के योद्धा पूर्वी सभ्यता से प्रभावित हुए. आगे चलकर इन्हीं योद्धाओं ने यूरोप में पुनर्जागरण (Renaissance in Europe) की नींव मजबूत की। सामंतवाद का ह्रास:- सामंती प्रथा के कारण किसानों, व्यापारियों, कलाकारों और साधारण जनता को स्वतंत्र चिंतन का अवसर नहीं मिलता था. सामंती युद्धों के कारण वातावरण हमेशा विषाक्त रहता था. किन्तु सामंती प्रथा के पतन से जन-जीवन संतुलित हो गया. शान्ति तथा व्यवस्था कायम हुई. शांतिपूर्ण वातावरण में लोग साहित्य, कला एवं व्यापार की प्रगति की और ध्यान देने लगे. शान्तिपूर्ण वातावरण में लोग साहित्य, कला और व्यापार की प्रगति की ओर ध्यान देने लगे. सामंतवाद का ह्रास का महत्त्वपूर्ण परिणाम राष्ट्रीय राज्यों का विकास था. लोगों में राष्ट्रीय भावना का जन्म हुआ। व्यापार तथा नगरों का विकास :- पुनर्जागरण का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण वाणिज्य-व्यापार का विकास था. नए-नए देशों के साथ लोगों का व्यापारिक सम्बन्ध कायम हुआ और उन्हें वहाँ की सभ्यता-संस्कृति को जानने का अवसर मिला. व्यापार के विकास ने एक नए व्यापारी वर्ग को जन्म दिया. व्यापारी वर्ग का कटु आलोचक और कट्टर विरोधी था. व्यापारी वर्ग ने चिंतकों, विचारकों, साहित्यकारों और वैज्ञानिकों को प्रश्रय दिया. इस प्रकार व्यापारी वर्ग की छत्रछाया में ज्ञान-विज्ञान की प्रगति हुई. व्यापार के विकास से नए-नए शहर बसे. इन शेरोन में व्यापार के सिलसिले में अनेक देशों के व्यापारी आते थे. उनके बीच विचारों का आदान-प्रदान होता था. विचारों के आदान-प्रदान से जनसाधारण का बौद्धिक विकास हुआ।

पूरब से संपर्क :-

जिस समय यूरोप के निवासी बौद्धिक दृष्टि से पिछड़े हुए थे, अरब वाले एक नयी सभ्यता-संस्कृति को जन्म दे चुके थे. अरबों का साम्राज्य स्पेन और उत्तरी अफ्रीका तक फैला हुआ था. वे अपने साम्राज्य-विस्तार के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान को भी फैला रखे थे. अरबों से सम्पर्क के कारण पश्चिम वालों को भी लाभ हुआ.

मध्यकालीन पंडितपंथ की परम्परा :- अरबों से प्राप्त ज्ञान को आधार मानकर यूरोप के विद्वानों ने अरस्तू के अध्ययन पर जोर दिया. उन्होंने पंडितपंथ परम्परा चलाई. इसमें प्राचीनता तथा प्रामाणिकतावाद की प्रधानता थी. प्राचीन साहित्य को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया. विभिन्न भाषाओं में प्राचीन साहित्य का अनुवाद किया गया. इस विचार-पद्धति में अरस्तू के दर्शन की प्रधानता थी।

Answered by komalrajora038
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udarvadi Siddhant kya hai

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