भारतीय पोशाक की विविधता को बार में अपने विचार
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भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जहां खान-पान, रहन-सहन, कपड़े-लत्ते और भाषा हर सौ किलोमीटर के बाद बदल जाती है. भारत के हर राज्य का अपना एक अलग पहनावा है, जो सालों-साल से चलता आ रहा है. बात उस दौर की है जब पश्चिमी पोशाकों का चलन यहां शुरू नहीं हुआ था, तब भारतीय इन पोशाकों को ही अपने शरीर का हिस्सा बनाते थे. हालांकि आज भी आपको भारत के कई हिस्सों में लोग अपनी पारंपरिक पोशाकों में दिख जाऐंगे. खासतौर पर यह दृश्य किसी उत्सव पर ही देखने को मिलता है.
इन सभी प्रकार की पोशाकों के रंग और पहनने का ढंग देख कर हम पहचान जाते हैं कि कोई व्यक्ति भारत के किस हिस्से से ताल्लुक रखता है. भारत में पोशाकों का संबंध मात्र शरीर को ढकने से नहीं है, बल्कि इनका संबंध भारतीय त्योहारों, परंपराओं और रीति-रिवाज़ों से भी है. यहां जिस प्रकार से धार्मिक, क्षेत्रीय और राजनीतिक विविधता है, उसी प्रकार से सभी क्षेत्रों में पोशाकों का भी अपना अलग महत्व है. जहां हिंदू महिलाएं विधवा होने पर सफेद साड़ी पहनती हैं, वहीं पारसी और ईसाई धर्म से जुड़ी महिलाएं शादी के मौके पर सफेद रंग की पोशाक पहनती हैं. यहां पोशाकें राज्य की भौगोलिक स्थिति पर भी निर्भर करती हैं. जैसे, कश्मीर में ठंडा मौसम होने के कारण वहां के लोग 'पेहरन' पहनते हैं, जो काफी गर्म होता है.
उत्तर भारत
जम्मू और कश्मीर में ठंड होने के कारण वहां की महिलाएं व पुरुष 'पेहरन' पहनते हैं, ये पोशाक पहाड़ी इलाकों में काफी प्रसिद्ध है. इसके अलावा पठानी सूट भी पहना जाता है, जिसे खान समुदाय के लोगों का पहनावा माना जाता है. यह पोशाक श्रीनगर में काफी प्रसिद्ध है.
हिमाचल प्रदेश में अलग-अलग समुदाय और जाति के लोग पश्मीना शॉल को तवज्जो देते हैं. इस शौल का महत्व सर्दियों के साथ-साथ त्योहारों और पारंपरिक कार्यक्रमों पर खासा बढ़ जाता है.
पंजाब अपनी 'फुलकारी' के लिए प्रसिद्ध है, जिसका मतलब शॉल पर बने फूल के डिज़ाइन से हैं. फूलों का डिज़ाइन या छाप शॉल, घाघरे और चोली पर गढ़ा जाता है. पंजाब में महिलाएं शरारा, साड़ी और सलवार-कमीज़ भी पहनती हैं, जो वहां की पारंपरिक पोशाक मानी जाती हैं.
हरियाणा की महिलाएं दामन कुर्ती और चूंदर पहनती हैं, ये इनकी पारंपरिक पोशाक है. यह पोशाक बेहद रंग-बिरंगी होती है. यहां के पुरुष धोती के साथ रंगीन कुर्ता या कमीज़ पहनते हैं, जिसके साथ पगड़ी भी बांधते हैं.
दिल्ली में भारत के अलग-अलग राज्यों के लोग रहते हैं, इसलिए आपको यहां आसानी से विभिन्न प्रकार के पहनावे देखने को मिल जाएंगे. खासतौर पर दिल्ली में पुरुष कुर्ता-पायजामा पहनते हैं और महिलाएं सलवार या चुनरीदार कमीज़-दुपट्टा, सलवार-कमीज़ और सलवार-सूट पहनती है. जिन पर हाथों से की गई पेंटिंग्स, कांच का काम और ज़री की बेहतरीन कारीगरी इनकी सुंदरता बढ़ाने का काम करती हैं.
उत्तर पूर्व भारत
पूर्वोतर, भारत का खूबसूरत हिस्सा है. यहां का पहनावा आपको अनोखा लग सकता है, जो आधुनिकता के करीब है. मिज़ोरम की लड़कियां Puanchei नाम की पारंपरिक पोशाक पहनती हैं, खासतौर पर इस ड्रेस को शादी और त्योहार के अवसर पर पहना जाता है. वहीं असम में महिलाएं Mekhla Chadar पहनती हैं, इसे दो हिस्सो में पहना जाता है, Mekhla को कमर पर लपेटा जाता है और चादर को ओढ़ा जाता है. यहां के पुरुष Dhoti-Gamosa पहनते हैं.
केंद्रीय और पूर्वी भारत
भारत के केंद्रीय और पूर्वी राज्यों में साड़ी एक पारंपरिक पोशाक है, जिसे यहां की अधिकतर महिलाएं पहनती हैं. इन साड़ियों के कई प्रकार होते हैं. पश्चिम बंगाल की पोशाकें यहां की परंपरा को उजागर करने का काम करती हैं. यहां की महिलाएं साड़ी, सलवार-कमीज़ पहनती हैं और पुरुष धोती-कुर्ता (धोती, जिसे लुंगी के नाम से पहचाना जाता है). अमूमन वे इस पोशाक में किसी त्योहार के दिन ही दिखाई देते हैं. वहीं बिहार में महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती-कुर्ता ही पहनते हैं.
भारत के पश्चिमी राज्य
भारत का पश्चिमी हिस्सा भी अपनी पारंपरिक पोशाकों के लिए प्रसिद्ध है. महाराष्ट्र में महिलाएं 9 गज की साड़ी पहनती हैं, जिसे Nauvari कहा जाता है. यहां Paithani साड़ी भी काफी प्रसिद्ध है. पुरुष आमतौर पर धोती के साथ कुर्ता और कमीज़ पहनते हैं. कुछ सिर पर केसरिया रंग की पगड़ी या सफेद रंग की टोपी पहनते हैं, जिसे Badi और Petha कहा जाता है. उनकी ये वेशभूषा आपको गणपति त्योहार पर आसानी से देखने को मिल जाएगी.
राजस्थान की पोशाकें बेहद रंगीन और चमकदार होती हैं. यहां पुरुष सफेद पगड़ी, पटका या कमरबंद, अंगरखा, पायजामा और धोती पहनते हैं. वहीं महिलाएं घाघरा, चोली और कुर्ती के साथ ओढ़नी पहने दिखाई पड़ती हैं.
दक्षिण भारत
भारत का यह हिस्सा गर्म रहता है इसीलिए यहां पहने जाने वाली पोशाकें सूती वस्त्र से बनाई जाती हैं, जो काफी हल्के होते हैं. पुरुष लुंगी और कमीज़ के साथ अंगवस्त्र (कंधे पर रखा जाने वाला कपड़ा) को लेते हैं. वहीं महिलाएं कॉटन और सिल्क से बनी रंग-बिरंगी साड़ियां पहनती हैं. ये साड़ियां दक्षिण भारत के केरल, कर्नाटक, और तमिलनाडु में रहने वाली अधिकतर महिलाएं पहनती हैं. केरल की महिलाएं Settu Mundu भी पहनती हैं.
Explanation:
भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जहां खान-पान, रहन-सहन, कपड़े-लत्ते और भाषा हर सौ किलोमीटर के बाद बदल जाती है. भारत के हर राज्य का अपना एक अलग पहनावा है, जो सालों-साल से चलता आ रहा है. बात उस दौर की है जब पश्चिमी पोशाकों का चलन यहां शुरू नहीं हुआ था, तब भारतीय इन पोशाकों को ही अपने शरीर का हिस्सा बनाते थे. हालांकि आज भी आपको भारत के कई हिस्सों में लोग अपनी पारंपरिक पोशाकों में दिख जाऐंगे. खासतौर पर यह दृश्य किसी उत्सव पर ही देखने को मिलता है.
भारत में जातीयता, भूगोल, जलवायु और क्षेत्र की सांस्कृतिक परंपराओं के आधार पर भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्त्र धारण किये जाते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से, पुरुष और महिला कपड़े सरल लंगोट से विकसित किया गया है, और (लॉंगक्लॉथ)विस्तृत परिधान के लिए शरीर को ढकने (कवर)के लिए साथ ही उत्सव के मौके अनुष्ठान और नृत्य प्रदर्शन और दैनिक पहनने में इस्तेमाल किया। शहरी क्षेत्रों में, पश्चिमी कपड़े आम और समान्य रूप से सभी सामाजिक स्तर के लोगों द्वारा पहना जाता है। भारत एक महान विविधता युक्त देश है यहाँ वीव, फाइबर, रंग और कपड़े की सामग्री है। रंग कोड के धर्म और रस्म संबंध पर आधारित कपड़ों में पीछा कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, हिंदू देवियों की पोषाख लाल हरी विविध रंगों की होती है पारसी और ईसाई की शादियों के लिए सफेद कपड़े पहनते हैं, जबकि इंगित करने के लिए सफेद कपड़े पहनते हैं। भारत में कपड़े भी भारतीय कढ़ाई की विस्तृत विविधता शामिल हैं।