भारतीय परिवार per essay
(1)देश में परिवार के प्रकार
(2)संयुक्त परिवार और एकल(3) परिवार दोनों परिवारों के लाभ-हानि
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प्राचीन सामाजिक संस्थाओं में कुटुम्ब या परिवार का विशिष्ट स्थान है । यह प्राचीन जीवन की मूलभूत इकाई है । परिवार के माध्यम से ही मनुष्य अपना उत्कर्ष करता है । परिवार से ही समाज का निर्माण होता है तथा यही नागरिक जीवन की प्रथम पाठशाला है ।
कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो परिवार से संबद्ध न हो । हमारी आवश्यकतायें परिवार के माध्यम से ही पूरी होती है । परिवार के अभाव में समाज का अस्तित्व ही संभव नहीं है । परिवार मनुष्य के जीवन की रक्षा करता है तथा जैविकीय आवश्यकताओं को पूरा करता है । समाज की निरंतरता परिवार के माध्यम से ही बनी रहती है ।
बर्गेस तथा लॉक ने परिवार को ऐसे व्यक्तियों का समूह बताया है जो विवाह, रक्त या गोद लेने के संबन्धों से निर्मित होता है । इसमें एक ऐसी गृहस्थी का निर्माण होता है जिसमें पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री तथा भाई-बहन एक दूसरे को प्रभावित करते हुए तथा परस्पर सम्पर्क रखते हुए एक सामान्य संस्कृति की रचना करते तथा उसे सुरक्षित बनाये रखते हैं । इस प्रकार परिवार के सदस्य परस्पर रक्त-संबंध से आबद्ध होते हैं ।
परिवार में पति, पत्नी, पुत्र-पुत्री तथा दूसरे निकट संबंधी सम्मिलित होते हैं । परिवार का प्रधान आधार विवाह होता है । इसका प्रारम्भ एक प्रजनक अथवा जैविक संस्था के रूप में हुआ जो बाद में मनुष्य के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामाजिक इकाई बन गया । सामाजिक महत्व की दृष्टि से कोई भी संगठन परिवार का अतिक्रमण नहीं कर सकता है ।
भारतीय कुटुम्ब अथवा परिवार संस्था का विकास (Growth of an Indian Family or Family Organization / System):
भारत में परिवार संस्था का अस्तित्व अत्यन्त प्राचीन काल से ही विद्यमान रहा है । आर्यों के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद से इस संस्था के स्वरूप पर प्रकाश पड़ता है । ज्ञात होता है कि पूर्व वैदिक काल में संयुक्त परिवार की प्रथा थी जिसमें माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री आदि के साथ ही साथ अन्य सम्बन्धी भी निवास करते थे ।
वे सब एक ही घर में रहते थे, साथ-साथ भोजन करते थे, एक धर्म का पालन करते थे तथा परिवार की सम्पत्ति पर सभी का अधिकार होता था । परिवार पितृसत्तात्मक होता था । इसमें पिता परिवार का निरंकुश शासक होता था तथा सभी सदस्यों को उसकी आज्ञाओं का पालन अनिवार्य रूप से करना होता था ।
ऐसा पता चला है कि संयुक्त परिवार में चार पीढ़ियों तक के सदस्य रहते थे । पिता का परिवार के सदस्यों पर असीमित अधिकार होता था । आवश्यकता पड़ने पर वह उन्हें कठोर दण्ड दे सकता था । वैदिक साहित्य में पिता द्वारा पुत्र को बेचे जाने, दान में दिये जाने, आँखें निकलवा लेने तक के उदाहरण मिलते हैं ।