Hindi, asked by nishabaghmare176, 7 hours ago

भारतीय राज्य के बदलते स्वरूप​

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Answered by anushkan477
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Explanation:

राजनीतिक धारणाएं किस तेज़ी से बदलती हैं- इसका प्रमाण इसी मार्च महीने ने दिया. जब त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड जैसे छोटे-छोटे राज्यों के चुनावी नतीजे आए तो बीजेपी की अजेयता का मिथक जैसे और दृढ़ हो गया. तब भारत के नक्शे पर भगवा रंग में रंगे 21 राज्यों की तस्वीर बता रही थी कि बीजेपी ही इस देश का इकलौता विकल्प है. लेकिन महज दो हफ़्ते के भीतर पटकथा जैसे बदल गई है. पूर्वोत्तर से उत्तर प्रदेश पहुंची कहानी ने गोरखपुर और फूलपुर के नतीजों के साथ यह संदेश दिया कि बीजेपी अजेय नहीं है, उसे पराजित किया जा सकता है.

इसके बाद विरोध और बगावत की आंधी दक्षिण भारत से उठी. आंध्र प्रदेश के दोनों दलों में जैसे होड़ लगी रही, आंध्र की उपेक्षा के सवाल पर केंद्र के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव कौन पहले लाता है. सवा तीन सौ सीटों वाले एनडीए के ख़िलाफ़ ऐसे किसी अविश्वास प्रस्ताव की कल्पना राजनीतिक मज़ाक लगती, इसके पहले उसे समर्थन मिलना शुरू हो गया. अब यह अविश्वास प्रस्ताव एक सच्चाई है, जिसके नोटिस का सामना फिलहाल लोकसभा अध्यक्ष को करना पड़ रहा है.

इसमें शक नहीं कि ऐसा कोई अविश्वास प्रस्ताव टिकेगा नहीं. आंध्र के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना भी भले इस पर विचार करने की बात कर रही हो, लेकिन बीजेपी फिलहाल इतनी मज़बूत है कि कोई बाहरी झटका उसे हिला नहीं सकता. लेकिन ऐसा अविश्वास प्रस्ताव आया और उसमें एनडीए के कुछ घटक इधर-उधर हो गए तो उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव बहुत तीखा पड़ेगा. फिलहाल सवा तीन सौ का दिख रहा एनडीए सिर्फ तेलुगू देशम और शिवसेना के अलग होने से तीन सौ के नीचे चला आएगा. फिर भी वह 272 की जादुई संख्या से ऊपर रहेगा और यह संख्या अकेले बीजेपी के पास है, इसलिए लोकसभा में उसके पांव नहीं कांपने वाले.

मगर मार्च के ही दोनों उदाहरण बताते हैं कि राजनीति में धारणाओं का बहुत मतलब होता है. नरेंद्र मोदी के फेंकू या राहुल गांधी के पप्पू होने की धारणाएं भले हक़ीक़त से कोसों दूर हों, लेकिन उनकी राजनीतिक अहमियत है, यह जानते हुए ही सोशल मीडिया पर चुटकुले बनाए और बांटे जाते हैं. चाहे तो याद कर सकते हैं कि हाल के दिनों में पप्पू को लेकर चुटकुले कम हुए हैं, फेंकू को लेकर अगर बढ़े नहीं हैं, तो पकौड़ों को लेकर ज़रूर पैदा हो गए हैं.

दरअसल, धारणाओं का यह खेल जहां फिलहाल तीसरे मोर्चे को बहुत ताकतवर बना रहा है, वहीं उसके सामने चुनौती भी पेश कर रहा है. योगी आदित्यनाथ ने बिल्कुल ठीक कहा कि बीजेपी सही समय पर गिरी है, उठने का मौका उसके पास है. इस तरह उठने में साल नहीं, महीने भी नहीं, हफ़्ते भर लगा करते हैं. अन्‍ना आंदोलन से पहले कांग्रेस अजेय लग रही थी और बीजेपी अपने गिने-चुने क्षत्रपों के सहारे विपक्ष में थी. मगर उस एक महीने ने हवा कुछ ऐसी बदली कि कांग्रेस भ्रष्टाचार का पुंज हो गई और नरेंद्र मोदी विकास पुरुष बन गए. उसके बाद चली आंधी में सबके सब उड़ गए.

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