भारतीय संघवाद की sammit
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लिखित संविधान
किसी भी संघ का सबसे प्रमुख लक्षण होता है। कि उनके पास एक लिखित संविधान हो जिससे कि जरूरत पड़ने पर केन्द्र तथा राज्य सरकार मार्ग दर्शन प्राप्त कर सकें। भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है और दुनिया का सबसे विस्तृत सं विधान है।
कठोर संविधान
संघीय संविधान केवल लिखित ही नहीं है बल्कि कठोर भी होता है। संविधान में महत्वपूर्ण संशोधनों के लिए संसद की स्वीकृति के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों के विधान मण्डलों की अनुमति भी आवश्यक हैं।
शक्तियों का विभाजन
हमारे संविधान में शक्तियों का स्पष्ट विभाजन है विधायी शक्तियों को तीन सूचियों में बांटा गया है- संघसूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची। संघ सूची में 97 राष्ट्रीय महत्व के विषयों का उल्लेख किया गया है। जिसके अन्तर्गत रक्षा, रेल्वे, डाक एवं तार आदि विषय आते है राज्य सूची में 66 स्थानीय महत्व के विषय जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस आदि आते है। समवर्ती सूची में केन्द्र तथा राज्य दोनों से संबंधित 47 महत्वपूर्ण विषय जैसे बिजली, मजदूर संगठन खाद्य पदार्थों में मिलावट आदि आते है।
द्वैध शासन प्रणाली
संघीय शासन में दो तरह की सरकारें होती है एक राष्ट्रीय सरकार और दूसरे उन राज्यों की सरकारें जिनके मिलने से संघ का निर्माण हुआ हो। दो तरह के विधानमण्डल है आरै दो प्रकार के पश््राासन पाये जाते है।
संविधान की सर्वोच्चता
भारत में न तो केन्दीय सरकार की सर्वोच्चता है और न राज्य सरकारें। संविधान ही सर्वोच्च है। क्योंकि केन्द्र व राज्य दोनों को संविधान द्वारा ही शक्तियां प्राप्त होती है।
उच्चतम न्यायालय की विशेष स्थिति
संघ के अन्य लक्षणों में एक अन्य महत्वपूर्ण लक्षण है कि उसके पास् एक स्वतंत्र न्यायपालिका हो जो संविधान की व्यवस्था करें। केन्द्र तथा राज्य के बीच उत्पन्न विवादों को सुलझाना उच्चतम न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार हैं। यदि केन्द्र अथवा राज्य सरकार द्वारा पारित कोई कानून संविधान के किसी किसी प्रावधान का उल्लंधन करता है तो सर्वोच्च न्यायालय उसे असंर्वेधानिक धोषित कर सकता है।
भारतीय संघ का स्वरूप
भारत में संघीय शासन की स्थापना की गई है लेकिन संविधान में कई ऐसी बातें भी है जो अन्य संघीय संविधानों से भिन्न है। कुछ विद्वानों ने यहां तक कहा कि- ‘‘भारत एक ऐसा संघीय राज्य की अपेक्षा जिसमें एकात्म तत्व गौण हो एक ऐसा एकात्मक राज्य है जिसमें संघीय तत्व गौण है।’’
संविधान की आत्मा एकात्मक है
यहां हम उन बातों की चर्चा करेंगे जिनके कारण भारत का संविधान एकात्मक सा दिखता हैं।
संसद की विधायी शक्तियां बहुत व्यापक हैं - परिस्थितियों में संसद उन विषयों पर भी कानून बना सकती है जो राज्य सूची में दिए गए है-
यदि राज्य सभा दो तिहाई बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर दे कि राष्ट्रीय हित के लिए यह आवश्यक है कि संसद राज्य सूची में दिए गए किसी विषय पर कानून बनाये।
दो से अधिक राज्यों के विधान मण्डल संसद को यह अधिकार दें कि वह राज्य सूची में शामिल किसी विषय पर कानून बनाए।
राष्ट्रपति द्वारा आपात काल की घोषणा हो जाने पर।
संसद किसी भी राज्य का आकार घटा या बढ़ा सकती है - भारतीय संसद नवीन राज्यों का निर्माण कर सकती है और राज्यों के आकार को घटा या बढ़ा सकती है।
राज्यों के अपने संविधान नहीं है - अमेरिका और स्विरजर लैण्ड में राज्यों के अपने अलग-अलग संविधान है परंतु भारत में केवल एक संविधान है जो केन्द्र और राज्य दोनों की शक्तियों का उल्लेख करता है।
दोहरी नागरिकता का आभाव - भारतीय संविधान दोहरी नागरिकता के सिद्धांत को भी स्वीकार नहीं करता। भारत में सभी देशवासियों के लिए ही नागरिकता है।
एकात्मक न्याय व्यवस्था - आस्टे्रलिया और अमेरिका में दोहरी अदालतें पाई जाती है- केन्द्रीय अदालतें औरा राज्यों की अपनी अलग अदालतें। परंतु भारत में एकल न्यायपालिका है। सभी न्यायालय सब प्रकार के कानूनों की व्याख्या करते हैं। और उच्चतम न्यायालय की अधीनता में कार्य करते हैं।
राज्यपाल की भूमिका - जहां तक राज्यपाल का प्रश्न है उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं वह राज्य में केन्द्र के एजेन्ट के रूप में कार्य करता है।
आपातकाल में संधात्मक संविधान एकात्मक रूप धारण कर लेता है - आपातकाल में संघात्मक संविधान एकात्मक रूप धारण कर लेता है- आपातकाल की घोषणा किए जाने पर संविधान एकात्मक रूप धारण कर लेता है। संकटकाल में संसद उन विषयों पर भी कानून बना सकती है जो राज्य सूची में शामिल है।