Hindi, asked by cherryg01, 1 year ago

भारतीय सिनेमा का युवा पीढ़ी पर प्रभाव

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Answered by Anonymous
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                           भारतीय सिनेमा का युवा पीढ़ी पर प्रभाव

आज के दौर में सिनेमा को मनोंरजन के रूप में गिना नही जाता बल्कि उससे कुछ सीखा जाता है। आजकल के युवा फिल्मे देख देख कुछ फिल्मों से समाज तथा युवा-वर्ग पर अच्छा प्रभाव भी पड़ता है ।आजकल सिनेमाघरों में लोगों के मन पर एक बड़ा प्रभाव छोड़ती है. युवाओं पर सिनेमा के प्रभाव को आसानी से देखा जा सकता है। इतना ही नहीं उसके प्रभाव ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के वृद्ध लोगों पर और बच्चों पर भी अच्छी तरह से देखा जा सकता है. एक स्वस्थ शौक को स्वागत किया जा सकता है लेकिन अक्सर फिल्मों को देखना एक अच्छा शौक नहीं है. सामाजिक विषयों से संबंधित फिल्में युवावर्ग में देशभक्ति, खेल, राष्ट्रीय एकता और मानव-मूल्यों का प्रसार करती हैं ।  हाल ही में आई सुल्तान ने युवाओं को बताया की अगर हम ठान ले की हमें यह काम करना तो हम उस चीज को पाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। फिल्मों ने हमारे सामाजिक जीवन को एक अलग धारणा में पेश किया है। इसमें सामाजिक उद्देश्य प्रधान फिल्मों के निर्माण की आवश्यकता है । ऐसी फिल्मी ऊबाऊ नहीं होनी चाहिए, क्योंकि दर्शक वर्ग उनके प्रति आकर्षित नहीं होगा । इसलिए सामाजिक संदेश वर्ग उनके प्रति आकर्षित नही होगा । इसलिए सामाजिक संदेश की फिल्में भी मनोरंजन से भरपूर होनी चाहिए । मार्गदर्शन भी होना चाहिए । जो आज के सिनेमा में नजर आ रहा है। युवा वर्ग देश का भावी निर्माता है, उन पर फिल्मों के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए उन फिल्मों का निर्माण होना चाहिए, जिनमें मनोरंजन और मार्गदर्शन दोनों का सम्मिलित पुट है । हिंसा की भावना समाज की प्रगति में बाधक है । युवा वर्ग के अति संवेदनशील मस्तिष्क को सामाजिक और नैतिक गुणों से भरपूर फिल्मों के माध्यम से योग्य नागरिक के रूप में तैयार किया जा सकता है । यही समय है जबकि फिल्म निर्माता अपने दायित्व को समझें और अच्छी अच्छी फिल्मों का निर्माण करें ।इधर कुछ ऐसी फिल्में भी बन रही हैं, जिन्होंने सिनेमा और समाज के बने-बनाए ढांचों को तोड़ा है।


cherryg01: thanks.
cherryg01: follow me back.
cherryg01: so what?
Answered by subhashnidevi4878
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भारतीय सिनेमा का युवा पीढ़ी पर ''सकारात्मक तथा नकारात्मक'' दोनों प्रकार के प्रभाव  पड़ रहे है

स्पष्टीकरण:

आज फिल्में हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग बन गई हैं । बच्चे-बूढ़े सभी फिल्मों की नकल करने की कोशिश करते हैं ।

सामान्यत: बड़ों की अपेक्षा छोटे बच्चे तथा किशोर फिल्मेनिया से प्रभावित होते हैं । वीडियो के आविष्कार के बाद, नई फिल्म के प्रथम शो का घर बैठे-बैठे ही आनंद उठा लिया जाता है । लेकिन फिर भी फिल्मों के प्रति आकर्षण का भाव किसी भी प्रकार कम नहीं हुआ है ।

प्राय: नगर में चल रही किसी लोकप्रिय फिल्म से प्रेरित होकर लूटमार अथवा अपहरण की घटनाएं सुनने में आती हैं ।

कुछ फिल्मों से समाज तथा युवा-वर्ग पर अच्छा प्रभाव भी पड़ता है । सामाजिक विषयों से संबंधित फिल्में युवावर्ग में देशभक्ति, राष्ट्रीय एकता और मानव-मूल्यों का प्रसार करती हैं । ऐसी फिल्में जाति-प्रथा, दहेज-प्रथा, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद जैसी सामाजिक कुरीतियों को दूर करने की प्रेरणा देती है ।

लेकिन फिल्मों के कुप्रभावों की संख्या ही अधिक है । युवा-वर्ग को हिंसा-प्रधान फिल्म में ही अच्छी लगती है । आज यदि वे अपने प्रिय नायक-नायिकाओं का पदानुसरण करते हैं, तो इसके लिए पूर्णत: उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता है । सारा दोष फिल्मों और फिल्म-निर्माताओं का है ।  इसलिए सामाजिक संदेश की फिल्में भी मनोरंजन से भरपूर होनी चाहिए । मार्गदर्शन भी होना चाहिए।

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