भारतीय संस्कृति एवं शिल्प
Answers
Answer:
प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत के कालक्रम में शिल्पकार को बहुआयामी भूमिका का निर्वाह करने वाले व्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है। शिल्पकार जिस जीवंतता vividity के साथ कार्य करता है, वह उसे एक सांस्कृतिक प्राणी और सौन्दर्योपासक वस्तु की सुंदरता की उपासना एवं आराधना करने वाला बना देती है।
Explanation:
This is your answer friend
Answer:
प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत के कालक्रम में शिल्पकार को बहुआयामी भूमिका का निर्वाह करने वाले व्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है।
शिल्प समुदाय की गतिविधियों व उनकी सक्रियता का प्रमाण हमें सिंधु घाटी सभ्यता 3000-1500 ई.पू. काल में मिलता है। इस समय तक ‘विकसित शहरी संस्कृति’ का उद्भव हो चुका था, जो अफगानिस्तान से गुजरात तक फैली थी। इस स्थल से मिले सूती वस्त्और विभिन्न, आकृतियों, आकारों और डिजाइनों के मिट्टी के पात्र, कम मूल्यवान पत्थरों से बने मनके, चिकनी मिट्टी से बनी मूर्तियां, मोहरें सील एक परिष्कृत शिल्प संस्कृति की ओर इशारा करते हैं।
बुनकर समाज मान्यता प्राप्त और स्थापित वर्ग था और उनके लिए अलग गलियाँ थीं, जिनके नाम ‘कारुगर वीडी’ और ऑरोवल वीडी था। चोल और विजयनगर साम्राज्यों 9वीं से 12वीं शताब्दी दोनों में ही बुनकर, मंदिर परिसर के आस-पास रहते थे। वे मूर्ति के वस्त्रों, परदों और पंड़ितों तथा स्थानीय लोगों के वस्त्रों के लिए कपड़ा बुनने के साथ-साथ समुद्रपारीय व्यापार हेतु भी कपड़ा बुनते थे।