History, asked by wwwrishirajyadav8888, 3 months ago

भारतीय संस्कृति में मेलो का क्या महत्व है​

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Answered by priyanshiiipal2005
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Explanation:

भारतीय सभ्यता और संस्कृति में मेलों का विशेष महत्व है। ... मेले न केवल मनोरंजन के साधन हैं, अपितु ज्ञानवर्द्धन के साधन भी कहे जाते हैं। प्रत्येक मेले का इस देश की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं से जुड़ा होना इस बात का प्रमाण हैं कि ये मेले किस प्रकार जन मानस में एक अपूर्व उल्लास, उमंग तथा

Answered by khushikansal516
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Answer:

त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के मुख्य तत्व हैं। वर्ष भर कोई न कोई पर्व या मेला कहीं न कहीं आयोजित हो रहा होता है। इन्हें बड़े उत्साह से मनाया जाता है। भौतिकतावाद और वैश्वीकरण की आपाधापी भरे युग में बड़ी संख्या में लोगों का इन त्योहारों में शामिल होना आश्चर्य पैदा करने वाला है। राष्ट्रीय व स्थानीय स्तर पर मनाए जाने वाले इन पर्वे की प्रतीक्षा की जाती है और पूरी तैयारी के साथ इन्हें मनाया जाता है। संसार के अन्य देशों में भी ऐसे आयोजन होते रहते हैं, किंतु भारतीय आयोजनों का अंतर समझने से भारतीय संस्कृति की विशिष्टता उभर कर सामने आती है। यह विशिष्टता देश की एकता और भाईचारे की भावना को दृढ आधार प्रदान करने वाली और मूल्यों को संरक्षित करने वाली है। प्रमुख बात है कि मेलों, त्योहारों को व्यक्तिगत रूप से नहीं पारिवारिक स्तर पर मनाया जाता है।

मुख्य त्योहारों पर दूरदराज रहने वाले परिवार के सदस्य भी घर आने को उत्सुक रहते हैं ताकि एक साथ पर्व का आनंद ले सकें। यह भावना जिस आनंद की जननी है, वह पाश्चात्य देशों की आनंद की अवधारणा से मूलत: भिन्न है। त्योहारों में पारिवारिक सहभागिता जहां इन्हें मर्यादा और गरिमा प्रदान करती है, वहीं सहयोग की भावना को भी बढ़ाती है-दशहरा, दीपावली, होली और ईद आदि को मनाने के लिये मोहल्ला, नगर स्तर पर समितियां बनाकर सहयोग और आनंद को विस्तार दे दिया जाता है।

सिख गुरुओं के प्रकाश पर्व पर निकलने वाली शोभा यात्रओं का स्वागत सभी धर्मो के लोगों द्वारा मिल कर किए जाने की परंपरा है। कुछ मेले तो ऐसे हैं, जो प्राचीन काल से ही स्थानीय स्तर पर आयोजित होते हैं, जिनमें आसपास के गावों, कस्बों के निवासी ही सम्मिलित होते हैं। लगभग सभी ऐसे त्योहार, मेले धर्म और धार्मिक संतों, देवी देवताओं से जुड़े होने के कारण सदाचार का वातावरण बनाते हैं। इन आयोजनों पर अनिवार्य रूप से हाट-बाजार का लगना आर्थिक आयाम भी जोड़ता है। छोटे-छोटे दुकानदार, शिल्पी इन बाजारों के लिए वर्ष भर प्रतीक्षा करते हैं और विशेष उत्पादों की बिक्री करते हैं। ग्राहकों को भी ऐसे बाजारों का इंतजार रहता है। बांसुरी, मिट्टी के दीपक, बच्चों के मिट्टी के खिलौने, खील-बताशे आदि इन बाजारों में ही प्रचुरता से नजर आते हैं।

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