Hindi, asked by baenglish521, 16 days ago

भारतीय संस्कृति में नारी धर्म पर निबंध ८०० शब्द में

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Answered by deshmukhgopal750
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‘नारी’। इस शब्द में इतनी ऊर्जा है, कि इसका उच्चारण ही मन-मस्तक को झंकृत कर देता है। इसके पर्यायी शब्द स्त्री, भामिनी, कांता आदि हैं और इसका पूर्ण स्वरूप मातृत्व में विकसित होता है। नारी, मानव की ही नहीं अपितु मानवता की भी जन्मदात्री है, क्योंकि मानवता के आधार रूप में प्रतिष्ठित सम्पूर्ण गुणों की वही जननी है।

 

जो इस ब्रह्माण्ड को संचालित करने वाले विधाता है, उसकी प्रतिनिधि है नारी। अर्थात् समग्र सृष्टि ही नारी है, इसके इतर कुछ भी नही है। इस सृष्टि में मनुष्य ने जब बोध पाया और उस अप्रतिम ऊर्जा के प्रति अपना आभार प्रकट करने का प्रयास किया तो बरबस मानव के मुख से निकला कि –

 

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।

त्वमेव विधा द्रविणं त्वमेव

त्वमेव सर्वं मम देव देव॥

अर्थात हे प्रभु तुम मां हो...।

अक्सर यह होता है कि जब इस सांसारिक आवरण में फंसते या मानव की किसी चेष्टा से आहत हो जाते हैं तो बरबस हमें एक ही व्यक्ति की याद आती है और वह है मां। अत्यंत दुख की घड़ी में भी हमारे मुख से जो ध्वनि‍ उच्चारित होती है वह सिर्फ मां ही होती है। क्योंकि मां की ध्वनि आत्मा से ही गुंजायमान होती है । और शब्द हमारे कंठ से निकलते हैं, लेकिन मां ही एक ऐसा शब्द है जो हमारी रूह से निकलता है। मातृत्वरूप में ही उस परम शक्ति को मानव ने पहली बार देखा और बाद में उसे पिता भी माना। बन्धु, मित्र आदि भी माना। इसी की अभिव्यक्ति कालिदास करते हैं कि -

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