Hindi, asked by ankurtiwariayush, 5 months ago

भारतीय संस्कृत में दान को महत्वपूर्ण माना गया है अपने विचार व्यक्त करें​

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Answered by Braɪnlyємρєяσя
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\huge \color{purple}\underbrace{HEY}

 \huge \color{green} \boxed{\colorbox{lightgreen}{ANSWER :)}}जिस प्रकार देवता अमर हैं उसी प्रकार संस्कृत भाषा भी अपने विशाल-साहित्य, लोक हित की भावना, विभिन्न प्रयासों तथा उपसर्गो के द्वारा नवीन-नवीन शब्दों के निर्माण की क्षमता आदि के द्वारा अमर है। आधुनिक विद्वानों के अनुसार संस्कृत भाषा का अखण्ड प्रवाह पाँच सहस्र वर्षों से बहता चला आ रहा है। भारत में यह आर्यभाषा का सर्वाधिक महत्वशाली, व्यापक और सम्पन्न स्वरूप है। इसके माध्यम से भारत की उत्कृष्टतम मनीषा, प्रतिभा, अमूल्य चिन्तन, मनन, विवेक, रचनात्मक, सर्जना और वैचारिक प्रज्ञा का अभिव्यंजन हुआ है। आज भी सभी क्षेत्रों में इस भाषा के द्वारा ग्रन्थनिर्माण की क्षीण धारा अविच्छिन्न रूप से वह रही है। आज भी यह भाषा, अत्यन्त सीमित क्षेत्र में ही सही, बोली जाती है। इसमें व्याख्यान होते हैं और भारत के विभिन्न प्रादेशिक भाषाभाषी पण्डितजन इसका परस्पर वार्तालाप में प्रयोग करते हैं। हिंदुओं के सांस्कारिक कार्यों में आज भी यह प्रयुक्त होती है। इसी कारण ग्रीक और लैटिन आदि प्राचीन मृत भाषाओं से संस्कृत की स्थिति भिन्न है। यह मृतभाषा नहीं, अमरभाषा है।

 \huge \color{red} \boxed{\colorbox{pink}{itsAyan}}

Answered by HorridAshu
0

{\huge{\boxed{\tt{\color {black}{Question:-}}}}}

भारतीय संस्कृत में दान को महत्वपूर्ण माना गया है अपने विचार व्यक्त करें.

{\huge{\boxed{\tt{\color {blue}{❥ ᴀɴsᴡᴇʀ}}}}}

जिस प्रकार देवता अमर हैं उसी प्रकार संस्कृत भाषा भी अपने विशाल-साहित्य, लोक हित की भावना, विभिन्न प्रयासों तथा उपसर्गो के द्वारा नवीन-नवीन शब्दों के निर्माण की क्षमता आदि के द्वारा अमर है। आधुनिक विद्वानों के अनुसार संस्कृत भाषा का अखण्ड प्रवाह पाँच सहस्र वर्षों से बहता चला आ रहा है। भारत में यह आर्यभाषा का सर्वाधिक महत्वशाली, व्यापक और सम्पन्न स्वरूप है। इसके माध्यम से भारत की उत्कृष्टतम मनीषा, प्रतिभा, अमूल्य चिन्तन, मनन, विवेक, रचनात्मक, सर्जना और वैचारिक प्रज्ञा का अभिव्यंजन हुआ है। आज भी सभी क्षेत्रों में इस भाषा के द्वारा ग्रन्थनिर्माण की क्षीण धारा अविच्छिन्न रूप से वह रही है। आज भी यह भाषा, अत्यन्त सीमित क्षेत्र में ही सही, बोली जाती है। इसमें व्याख्यान होते हैं और भारत के विभिन्न प्रादेशिक भाषाभाषी पण्डितजन इसका परस्पर वार्तालाप में प्रयोग करते हैं। हिंदुओं के सांस्कारिक कार्यों में आज भी यह प्रयुक्त होती है। इसी कारण ग्रीक और लैटिन आदि प्राचीन मृत भाषाओं से संस्कृत की स्थिति भिन्न है। यह मृतभाषा नहीं, अमरभाषा है।

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