Social Sciences, asked by ahirwarprince934, 3 months ago

भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान का दर्शन कहा जाता है। त्वष्ट करे 150 words

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Answered by badaisadram
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Answered by shivshantsngh80093
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संविधान की प्रस्तावना, पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा प्रारूपित और संविधान सभा द्वारा स्वीकृत उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है। प्रख्यात न्यायविद् व संविधान विशेषज्ञ एन.एन पालकीवाला ने प्रस्तावना को “संविधान का परिचय-पत्र” कहा है। प्रस्तावना में संविधान सभा की महान एवं आदर्श सोच दिखाई पड़ती है। इसमें संविधान-निर्माताओं की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब नज़र आता है।

प्रस्तावना में शामिल कुछ शब्द संविधान के दार्शनिक पक्ष को समेटे हुए हैं, जैसे- संप्रभुता, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र शब्द भारत की प्रकृति के बारे में एवं न्याय, स्वतंत्रता व समानता शब्द भारत के नागरिकों को प्राप्त अधिकारों के बारे में बतलाते हैं।

संप्रभुता- भारत एक संप्रभु देश है। यह अपने बाह्य और आतंरिक दोनों मामलों पर निर्णय लेने के लिये स्वतंत्र है। यह किसी विदेशी सीमा का अधिग्रहण कर सकता है और अपनी सीमा के किसी भाग पर अपना दावा त्याग सकता है।

समाजवादी- भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद है अर्थात् यहाँ उत्पादन और वितरण के साधनों पर निजी और सार्वजानिक दोनों क्षेत्रों का अधिकार है। भारतीय समाजवाद का चरित्र गांधीवादी समाजवाद की ओर अधिक झुका हुआ है, जिसका उद्देश्य अभाव, उपेक्षा और अवसरों की असमानता का अंत करना है।

धर्मनिरपेक्ष- भारत में सभी धर्म समान हैं और सभी को सरकार से समान समर्थन प्राप्त है।

लोकतांत्रिक- प्रस्तावना भारत में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र की मौज़ूदगी को दर्शाती है।

गणतंत्र- भारत का प्रमुख (राष्ट्रपति) चुनाव के बाद सत्ता में आता है, न कि उत्तराधिकारिता के माध्यम से।

संविधान की प्रस्तावना में नागरिकों के लिये राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक न्याय के साथ स्वतंत्रता के सभी रूप शामिल हैं। प्रस्तावना नागरिकों को आपसी भाईचारा व बंधुत्व के माध्यम से व्यक्ति के सम्मान तथा देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने का संदेश देती है। बंधुत्व का उद्देश्य सांप्रदायिकता,क्षेत्रवाद,जातिवाद तथा भाषावाद जैसी बाधाओं को दूर करना है।

प्रस्तावना में प्रतिबंधकारी शक्तियाँ भले ही न हों, परंतु यह हमारे संविधान की आत्मा है। संविधान निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सर अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर के अनुसार-“संविधान की प्रस्तावना हमारे दीर्घकालिक सपनों का विचार है।” प्रस्तावना एक ऐसा उचित स्थान है, जहाँ से कोई भी संविधान का मूल्यांकन कर सकता है।

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