Hindi, asked by feriha007, 8 months ago

भारतीय संविधान द्वारा प्राप्त भाषाअौ की लिपिथौ के माध्यम से सूचि तैयार करो​

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Answered by nikhilsehrawat
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Answer:

भारत का संविधान,भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन (26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।[1][2][3] भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है।[4]

संविधान सभा

मुख्य लेख: भारतीय संविधान सभा

संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद को भारतीय संविधान सुपुर्द करते हुए डॉ॰ बी आर आंबेडकर, 26 नवम्बर 1949

जवाहरलाल नेहरू संविधान पर हस्ताक्षर करते हुए

भारतीय संविधान सभा के लिए जुलाई 1946 में चुनाव हुए थे। संविधान सभा की पहली बैठक दिसंबर 1946 को हुई थी। इसके तत्काल बाद देश दो हिस्सों - भारत और पाकिस्तान में बंट गया था। संविधान सभा भी दो हिस्सो में बंट गई- भारत की संविधान सभा और पाकिस्तान की संविधान सभा।

भारतीय संविधान लिखने वाली सभा में 299 सदस्य थे जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 में अपना काम पूरा कर लिया और 26 जनवरी 1950 को यह संविधान लागू हुआ। इसी दिन कि याद में हम हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। भारतीय संविधान को पूर्ण रूप से तैयार करने में 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन का समय लगा था।

संक्षिप्त परिचय

Answered by za6715
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\huge\red Ans

सविधान सभा को केवल राजभाषा, राष्ट्रभाषा या लिपि के सवालों को ही नहीं सुलझाना था, और भी कई सवाल थे। आज हमें लगता होगा कि भाषा व लिपि का सवाल बहुत सरल रहा होगा संविधान सभा के लिए, इसके ठीक विपरीत वास्तव में, संविधान सभा के सदस्य नज़िरुद्दीन अहमद साहिब का कहना था कि हिन्दी अभी देश की भाषा होने के लिए तैयार नहीं है। जिस भाषा को देश की भाषा बनना हो उसके उत्तम लेखक व दार्शनिक होने चाहिए; उसमें लिखने वाले कलाकार व वैज्ञानिक होने चाहिए। हिन्दी अभी वैसी भाषा नहीं है। फिर भी संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का बोल-बाला होने लगा। संविधान सभा के मुस्लिम साथियों को अचानक लगने लगा कि वे जैसे किसी और देश में आ गए हों। हिफज़ुर रहमान हैरान थे कि कल तक सब लोग खुश थे कि हिन्दुस्तानी देश की राष्ट्रभाषा होगी और वह दोनों लिपियों, यानी फारसी व देवनागरी, में लिखी जाएगी। फिर अचानक यह सब क्या हो गया? गाँधीजी बड़े उत्साह के साथ हिन्दी साहित्य सम्मलेन का हिस्सा बने। पर उन्हें जैसे ही पता लगा कि यह संस्था हिन्दी व उर्दू को अलग-अलग करना चाहती है और हिन्दुस्तानी जो कि आम लोगों की भाषा थी, उससे अलग करना चाहती है तो उन्होंने एकदम उससे त्यागपत्र दे दिया। हिन्दुस्तानी के सामान्य शब्दों को संस्कृत या फारसी शब्दों से बदलना उन्हें गवारा नहीं था। हिफज़ुर रहमान को लगा कि संविधान सभा भाषा को लेकर निरन्तर गाँधीजी के सपने से दूर जा रही है। उनका कहना था कि उर्दू कोई अरब, ईरान या स्पेन से नहीं आई, वह तो भारत की अपनी भाषा है।

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