भारतीय स्वाधिनता संग्राम में महिलाओं का योगदान। इस विषय पर सचित्र निबंध लिखिए।
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आजादी के 70 साल पूरे हो गए हैं. पर देशवासियों के दिल में आज भी उन शख्सियतों के लिए प्यार और सम्मान कम नहीं हुआ है, जिन्होंने आजादी की खातिर अपनी जान गंवा दी. आजादी के लिए कुर्बानी देने और देश के लिए लड़ने वाले वीरों में देश की विरंगनाएं भी थीं. आजादी के 70 साल पूरे होने पर हम आपको कुछ ऐसी विरंगनाओं के बारे में बता रहे हैं, आजादी में जिनका योगदान सराहनीय है.
आजादी की खातिर इन 10 महिलाओं ने छोड़ दिया घर का ऐशो आराम
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विजया लक्ष्मी पंडित: एक कुलीन घराने से ताल्लुक रखने वाली और जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मीं पंडित भी आजादी की लड़ाई में शामिल थीं. सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था. भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं. वे संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थीं और स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत. जिन्होंने मॉस्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया.
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सुचेता कृपलानी: सुचेता एक स्वतंत्रता सेनानी थी और उन्होंने विभाजन के दंगों के दौरान महात्मा गांधी के साथ रह कर कार्य किया था. इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई थी. उन्हें भारतीय संविधान के निर्माण के लिए गठित संविधान सभा की ड्राफ्टिंग समिति के एक सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया था. उन्होंने भारतीय संविधान सभा में ‘वंदे मातरम’भी गाया था. आजादी के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य की मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया.
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सावित्रीबाई फुले: इन्हें ‘सीक्रेट कांग्रेस रेडियो’के नाम से भी जाना जाता है. इसे शुरू करने वाली ऊषा मेहता ही थीं. भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान कुछ महीनों तक कांग्रेस रेडियो काफी सक्रिय रहा था. इस रडियो के कारण ही उन्हें पुणे की येरवाड़ा जेल में रहना पड़ा. वे महात्मा गांधी की अनुयायी थीं.
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सरोजिनी नायडू: भारतीय कोकिला के नाम से मशहूर सरोजिनी नायडू सिर्फ स्वएतंत्रता संग्राम सेनानी ही नहीं, बल्कि बहुत अच्छी कवियत्री भी थीं. सरोजिनी नायडू ने खिलाफत आंदोलन की बागडोर संभाली और अग्रेजों को भारत से निकालने में अहम योगदान दिया.
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लक्ष्मी सहगल : पेशे से डॉक्टर रहते हुए लक्ष्मी सहगल ने सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर प्रमुख भूमिका निभाई थी. लक्ष्मी सहगल ने साल 2002 के राष्ट्रपति चुनावों में भी हिस्सेदारी निभाई थी. वो राष्ट्रपति चुनाव में वाम-मोर्चे की उम्मीदवार थीं. लेकिन एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें हरा दिया था. उनका पूरा नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन सहगल था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अटूट अनुयायी के तौर पर वे इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल हुईं थीं. उन्हें वर्ष 1998 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था.
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रानी लक्ष्मी बाई : भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा जरूर होती है. देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं.
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कस्तूरबा गांधी: मोहनदास करमचंद गांधी ने ‘बा’ के बारे में खुद स्वीकार किया था कि उनकी दृढ़ता और साहस खुद गांधीजी से भी उन्नत थे. महात्मा गांधी की आजीवन संगिनी कस्तूीरबा की पहचान सिर्फ यह नहीं थी, आजादी की लड़ाई में उन्होंने हर कदम पर अपने पति का साथ दिया था, बल्कि यह कि कई बार स्वतंत्र रूप से और गांधीजी के मना करने के बावजूद उन्होंने जेल जाने और संघर्ष में शिरकत करने का निर्णय लिया. वह एक दृढ़ आत्मशक्ति वाली महिला थीं और गांधीजी की प्रेरणा भी.
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कमला नेहरू: जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला कम उम्र में ही दुल्हन बन गई थीं. लेकिन समय आने पर यही शांत स्वाभाव की महिला लौह स्त्री साबित हुई, जो धरने-जुलूस में अंग्रेजों का सामना करती, भूख हड़ताल करतीं और जेल की पथरीली धरती पर सोती थी. इन्होंने असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर शिरकत की थी.
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दुर्गा बाई देशमुख: दुर्गा बाई देशमुख महात्मा गांधी के विचारों से बेहद प्रभावित थीं. शायद यही कारण था कि उन्होंने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया व भारत की आजादी में एक वकील, समाजिक कार्यकर्ता, और एक राजनेता की सक्रिय भूमिका निभाई. वो लोकसभा की सदस्य होने के साथ-साथ योजना आयोग की भी सदस्य थी.
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अरुणा आसफ: अरूणा आसफ अली को भारत की आजादी के लिए लड़ने वाली एक सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में पहचाना जाता है. उन्होंने एक कार्यकर्ता होने के नाते नमक सत्याग्रह में भाग लिया और लोगों को अपने साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. साथ ही वो ‘इंडियन नेशनल कांग्रेस’की एक सक्रिय सदस्य थीं. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मासिक पत्रिका‘इंकलाब’का भी संपादन किया. साल 1998 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.