Hindi, asked by NikhilKumarJha60, 5 hours ago

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में साहित्यकारों के योगदान पर एक रिपोर्ट तैयार करें।​

Answers

Answered by jaipraneshpk8bsmbm
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Explanation:

Here we will show you how to determine if 3/6 is a terminating decimal or a non-terminating decimal.

A terminating decimal is a decimal number that has a finite number of decimals and does not go on indefinitely. We want to know if the decimal number you get when you divide the fraction 3/6 (3 ÷ 6) is terminating or non-terminating.

Answered by ishusri410
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स्वतंत्रता आंदोलन को अहिंसक बनाए रखने के गांधी के संकल्प के कारण भारत में आजादी की अधिकतर लड़ाई कलम ले लड़ी गई। यह कलम ही थी जिसने जनमानस को सचेत किया। आजादी में कलम के योगदान को समर्पित यह अंक…

यह सभी जानते हैं कि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हुआ। यह हमारे राष्ट्रीय जीवन में हर्ष और उल्लास का दिन तो है ही, इसके साथ ही स्वतंत्रता की खातिर अपने प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों का पुण्य दिवस भी है। देश की स्वतंत्रता के लिए 1857 से लेकर 1947 तक क्रांतिकारियों व आंदोलनकारियों के साथ ही लेखकों, कवियों और पत्रकारों ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनकी गौरव गाथा हमें प्रेरणा देती है कि हम स्वतंत्रता के मूल्य को बनाए रखने के लिए कृत संकल्पित रहें। प्रेमचंद की रंगभूमि, कर्मभूमि (उपन्यास), भारतेंदु हरिश्चंद्र का भारत-दर्शन (नाटक), जयशंकर प्रसाद का चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त (नाटक) आज भी उठाकर पढि़ए, देशप्रेम की भावना जगाने के लिए बड़े कारगर सिद्ध होंगे। वीर सावरकर की ‘1857 का प्रथम स्वाधीनता संग्राम’ हो या पंडित नेहरू की ‘भारत एक खोज’ या फिर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की ‘गीता रहस्य’ या शरद बाबू का उपन्यास ‘पथ के दावेदार’ -जिसने भी इन्हें पढ़ा, उसे घर-परिवार की चिंता छोड़ देश की खातिर अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए स्वतंत्रता के महासमर में कूदते देर नहीं लगी। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ‘भारत-भारती’ में देशप्रेम की भावना को सर्वोपरि मानते हुए आह्वान किया :

जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।

वह नर नहीं, नर-पशु निरा है और मृतक समान है।।

देश पर मर मिटने वाले वीर शहीदों के कटे सिरों के बीच अपना सिर मिलाने की तीव्र चाहत लिए सोहन लाल द्विवेदी ने कहा :

हो जहां बलि शीश अगणित, एक सिर मेरा मिला लो।

वहीं सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘झांसी की रानी’ कविता को कौन भूल सकता है, जिसने अंग्रेजों की चूलें हिला कर रख दी। वीर सैनिकों में देशप्रेम का अगाध संचार कर जोश भरने वाली अनूठी कृति आज भी प्रासंगिक है :

सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकृटी तानी थी,

बूढे़ भारत में भी आई, फिर से नई जवानी थी,

गुमी हुई आजादी की, कीमत सबने पहिचानी थी,

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,

चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।

‘पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं’ का मर्म स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रहे वीर सैनिक ही नहीं वफादार प्राणी भी जान गए, तभी तो पं. श्याम नारायण पांडेय ने महाराणा प्रताप के घोड़े ‘चेतक’ के लिए ‘हल्दी घाटी’ में लिखा :

रणबीच चौकड़ी भर-भरकर, चेतक बन गया निराला था,

राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था,

गिरता न कभी चेतक तन पर, राणा प्रताप का कोड़ा था,

वह दौड़ रहा अरि मस्तक पर, या आसमान पर घोड़ा था।

देशप्रेम की भावना जगाने के लिए जयशंकर प्रसाद ने ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’, सुमित्रानंदन पंत ने ‘ज्योति भूमि, जय भारत देश’, निराला ने भारती! जय विजय करे। स्वर्ग सस्य कमल धरे’, कामता प्रसाद गुप्त ने ‘प्राण क्या हैं देश के लिए, देश खोकर जो जिए तो क्या जिए’, इकबाल ने ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’, तो बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ ने ‘विप्लव गान’ में कहा :

कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए

एक हिलोर इधर से आए, एक हिलोर उधर को जाए

नाश ! नाश! हां महानाश! ! ! की

प्रलयंकारी आंख खुल जाए।

इन कवियों ने यह वीर रस वाली कविताएं सृजित कर रणबांकुरों में नई चेतना का संचार किया। इसी श्रृंखला में शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, रामनरेश त्रिपाठी, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, राधाचरण गोस्वामी, बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन, राधाकृष्ण दास, श्रीधर पाठक, माधव प्रसाद शुक्ल, नाथूराम शर्मा शंकर, गया प्रसाद शुक्ल स्नेही (त्रिशूल), माखनलाल चतुर्वेदी, सियाराम शरण गुप्त, अज्ञेय जैसे अगणित कवियों के साथ ही बंकिम चंद्र चटर्जी का देशप्रेम से ओत-प्रोत ‘वंदे मातरम’ गीत आजादी के परवानों को प्रेरित करता है। ‘वंदे मातरम’ आज हमारा राष्ट्रीय गीत है, जिसकी श्रद्धा, भक्ति व स्वाभिमान की प्रेरणा से लाखों युवक हंसते-हंसते देश की खातिर फांसी के फंदे पर झूल गए। वहीं हमारे राष्ट्रगान ‘जन गण मन अधिनायक’ के रचयिता रवींद्र नाथ ठाकुर का योगदान अद्वितीय व अविस्मरणीय है। स्वतंत्रता दिवस के सुअवसर पर बाबू गुलाबराय का कथन समीचीन है – ‘15 अगस्त का शुभ दिन भारत के राजनीतिक इतिहास में सबसे अधिक महत्त्व का है। आज ही हमारी सघन कलुष-कालिमामयी दासता की लौह शृंखला टूटी थी। आज ही स्वतंत्रता के नवोज्ज्वल प्रभात के दर्शन हुए थे। आज ही दिल्ली के लाल किले पर पहली बार यूनियन जैक के स्थान पर सत्य और अहिंसा का प्रतीक तिरंगा झंडा स्वतंत्रता की हवा के झोंकों से लहराया था। आज ही हमारे नेताओं के चिरसंचित स्वप्न चरितार्थ हुए थे। आज ही युगों के पश्चात् शंख-ध्वनि के साथ जयघोष और पूर्ण स्ततंत्रता का उद्घोष हुआ था।’ ‘ऐ मेरे वतन के लोगो ज़रा आंख में भर लो पानी’ गीत को याद करते हुए सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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