भारतीय समाज की कार्यात्मक संरचनात्मक पर्यवेक्षण कीजिए
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समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवाद के साथ ही साथ प्रकार्यवादी सोच का एक विशेष स्थान रहा है। प्रकार्यवादी सिद्धान्त के समर्थक यह मानते हैं कि समाज की क्रियाएँ व्यवस्थित तरीकें से चलती है और इसलिए वह समाज को एक व्यवस्था (सिस्टम) के रूप में देखतें हैं। सामाजिक व्यवस्था को व्यवस्थित रूप से चलाए रखने में विभिन्न तत्वों के बीच आत्मनिर्भरता पाई जाती है। समाज के ये विभिन्न तत्व एक सम्पूर्ण व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं। अतः समाज एक सम्पूर्ण व्यवस्था है जिसके व्यवस्थित स्वरूप को बनाए रखने में विभिन्न समूहों तथा संस्थाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है। समाजशास्त्र में प्रकार्यवादी सिद्धान्त के जनक इमाइल दुर्खिम को माना जाता है जिन्होंने यह बताया था कि समाज में एकता बनाए रखने के लिए धर्म, नैतिक आधार प्रदान करता है। धर्म के आधार पर समाज के नैतिक मूल्य, समाज के एकाकी स्वरूप को पुष्ट करते हैं।