भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को आगे लाने केलिए क्या- क्या कदम उठाया जाना चाहिए इसके बारे में 200 शब्दों में एक निबन्ध लिखिए ।
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अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी
आंचल में हैं दूध, और आंखों में पानी॥
नारी की स्थिति पर गुप्त जी की लिखी उपरोक्त लाइनें एकदम सटीक और दिल को छू जाने वाली हैं. इन पंक्तियों का सीधा मतलब है नारी का जीवन ही अजीब है, उसके आंचल में तो जिंदगी देने वाला दूध है लेकिन आंखों में तो वही आंसू है. कितना अजीब है नारी का जीवन! लेकिन आज हालात थोड़े ही सही सुधरे जरुर हैं. कल तक घर की चारदिवारी में रहने वाली नारी आज घर के दहलीज के बाहर भी अपने सपने देख सकने के काबिल हुई है. शिक्षा, नई राह और बदलते दृष्टिकोण की वजह से नारी आज एक शक्ति के रुप में उभर रही है. नारी आज के बदलते परिवेश में जिस तरह पुरुष वर्ग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति की ओर अग्रसर हो रही है, वह समाज के लिए एक गर्व और सराहना की बात है. आज राजनीति, टेक्नोलोजी, सुरक्षा समेत हर क्षेत्र में जहां जहां महिलाओं ने हाथ आजमाया उसे कामयाबी ही मिली. अब तो ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां आज की नारी अपनी उपस्थिति दर्ज न करा रही हो. और इतना सब होने के बाद भी वह एक गृहलक्ष्मी के रूप में भी अपना स्थान बनाए हुए है. लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी विचारणीय है जहां आज भी महिलाओं को घर के बाहर न निकलने की हिदायत दी जाती है, रेप या बलात्कार होने पर आत्महत्या पर मजबूरकरने वाला समाज, कन्या भ्रूण हत्या जैसे पाप हमारे समाज के विकास में अवरोध पैदा कर रहे हैं.
अगर हम समय से थोड़ा ही पीछे जाएं तो मालूम होगा कि हालात कितने बदले हैं. 1991 से पहले देश में महिलाओं की स्थिति बेहद कमजोर और दयनीय मानी जा सकती थी. जहां एक तरफ समाज में इंदिरा गांधी जैसी महिलाओं ने नारी सशक्तिकरण की तरफ कदम बढ़ाए वहीं दूसरी तरह अपना देश उन देशों में शामिल था जहां पर लिंगानुपात में भारी अंतर था. लिंगानुपात से मतलब होता है प्रति हजार पुरूषों में महिलाओं की संख्या. 1901 में भारत में लिंगानुपात 972 था जो कि गिरते गिरते 1991 में 927 हो गया. देश के पिछड़े इलाकों में महिलाओं का जीवन बेहद कठिन और पुरुषों के अनुसार चलता था. लेकिन पहले भी ऐसा नहीं था कि महिलाओं की समाज के आर्थिक क्षेत्र में कोई भागीदारी नहीं थी. पहले भी महिलाएं समाज में आर्थिक क्षेत्र में सहयोग देती थीं लेकिन समाज उनके योगदान को मान्यता नहीं देता था. सरकारी नौकरी हो या प्राइवेट सेक्टर महिलाएं हर जगह कार्यरत थीं लेकिन हमारा पुरुष प्रधान समाज उन्हें उनकी सही मान्यता नहीं देता था.