भारतीय शासन अधिनियम 1935 के 5 आलोचना btaye
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भारतीय शासन अधिनियम 1935 की पाँच आलोचना इस प्रकार हैं...
- दोषपूर्ण संघ ► इस अधिनियम के अनुसार जिस संघ की स्थापना का सुझाव दिया गया था, उसमें दोष था। इस अधिनियम के अनुसार भारतीय संघ में ब्रिटिश प्रांतों को तो मिलाना जरूरी कर दिया गया था, लेकिन देसी रियासतों को उनकी मर्जी पर छोड़ दिया गया था।
- न्यायालय की सर्वोच्चता का अभाव ► इस अधिनियम में संघीय न्यायालय को सर्वोच्च नहीं माना गया, क्योंकि इसके निर्णय के विरूद्ध लंदन स्थित प्रीवी काउंसिल में अपील की जा सकती थी।
- भारतीय हितों की उपेक्षा ► इस अधिनियम में भारतीयों की हितों को ध्यान नहीं रखा गया। इस अधिनियम में 1919 के अधिनियम के प्रस्ताव को ही मान्यता दी गई, जिसके अनुसार भारत पर अंग्रेजों का नियंत्रण पूर्ववत बना रहेगा, जबकि भारतीयों ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की थी।
- प्रांतीय स्वायत्तता का भ्रम ► इस अधिनियम में प्रांतीय स्वशासन भ्रम पैदा किया गया। क्योंकि गवर्नर जनरल के विशेष उत्तरदायित्वों और विशेष अधिकारों के कारण प्रांतीय स्वायत्तता एक भ्रम मात्र बनकर रह गई थी।
- आत्म निर्णय के नियम का अभाव ► इस अधिनियम में भारतीयों को अपने हितों से संबंध में निर्णय करने का अधिकार मिलने का कोई प्रावधान नहीं था।
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