भारतीय उत्सव और उनके महत्त्व
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जब सूर्य 'उत्तरायण' होता है तो उत्सव का माहौल होता है। 'मकर संक्रांति' एक उत्सव है और जब सूर्य की दक्षिणायन गति होती है तो व्रतों का माहौल होता है। 'श्राद्ध कर्म' व्रत और पूण्य कर्म है। श्राद्ध कर्म के पूर्व व्रतों का पालन किया जाता है।
ब्रह्मांडीय समय प्रबंधन :
उक्त दोनों ही कर्तव्यों के अंतर्गत आते हैं। उक्त कर्तव्यों का वैज्ञानिक आधार है। उत्तरायण सूर्य शरीर, मन और वातावरण में उल्लास लाता है। दक्षिणायण सूर्य से शरीर, मन और वातावरण में विकार उत्पन्न हो सकते हैं। इस दौरान अमावस्य, पूर्णिमा, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण और अन्य खगोलीय घटना के दौरान व्रत और उत्सव का उल्लेख मिलता है।
हिंदू सनातन धर्म के सभी उत्सव और व्रत ब्राह्मांड की खगोलीय घटना, धरती के वातावरण परिवर्तन, मनुष्य के मनोविज्ञान तथा सामाजिक कर्तव्य और ध्यान करने तथा मोक्ष प्राप्ति के उचित समय को ध्यान में रखकर निर्मित किए गए हैं। उचित नियम से किए जाने वाले उत्सव और व्रत से जीवन के सभी संकट से मुक्त हुआ जा सकता है। अनुचित तरीके और मनमाने नियम से धर्म की हानि होकर जीवन कष्टमय हो सकता है। उक्त से हटकर मनाए जाने वाले उत्सवों का कोई आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व नहीं, वह सिर्फ मजे के लिए या किसी तथाकथित संत व समाज की तुष्टि के लिए हो सकते हैं।
हिंदू कर्तव्यों में शामिल उत्सव :
कर्तव्यों का विशद विवेचन धर्मसूत्रों तथा स्मृतिग्रंथों में मिलता है। वेद, पुराण, गीता और स्मृतियों में उल्लेखित चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक सनातनी (हिंदू या आर्य) को कर्तव्यों के प्रति जाग्रत रहना चाहिए ऐसा ज्ञानीजनों का कहना है। कर्तव्यों के पालन करने से चित्त और घर में शांति मिलती है। चित्त और घर में शांति मिलने से मोक्ष व समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
कर्तव्यों के कई मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कारण और लाभ हैं। जो मनुष्य लाभ की दृष्टि से भी इन कर्तव्यों का पालन करता है वह भी अच्छाई के रास्ते पर आ ही जाता है। दुख: है तो दुख से मुक्ति का उपाय भी कर्तव्य ही है। हिंदु कर्तव्यों में प्रमुख है:-
संध्योपासन, व्रत, तीर्थ, उत्सव, सेवा, दान, यज्ञ और संस्कार।
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