भारतीय विदेश नीति का मूल मंत्र क्या है?
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किसी देश की विदेश नीति, जिसे विदेशी संबंधों की नीति भी कहा जाता है, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के वातावरण में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य द्वारा चुनी गई स्वहितकारी रणनीतियों का समूह होती है। किसी देश की विदेश नीति दूसरे देशों के साथ आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा सैनिक विषयों पर पालन की जाने वाली नीतियों का एक समुच्चय है।।
India's-Foreign-Policy
भारत में प्रशासन
भारत की विदेश नीति India’s Foreign Policy
October 3, 2015 admin 89135 Views 1 Comment
कोई भी देश अलग-थलग होकर या पूरी तरह आत्मनिर्भर होकर नहीं रह सकता। विभिन्न देशों की विविध प्रकार की जरूरतों की पूर्ति के लिए उनमें पारस्परिक अंतर्निर्भरता उन्हें एक-दूसरे के नजदीक लाती है और इससे सहयोग एवं मतभेद की ताकतों को भी बल मिलता है।
विदेश नीति के निर्धारक तत्व
एक देश की विदेश नीति को निर्धारित एवं प्रभावित करने वाले कारक हैं-भू-रणनीतिक अवस्थिति,सैन्य क्षमता, आर्थिक शक्ति, एवं सरकार का स्वरूप। दूसरी तरफ विदेश नीति संबंधी निर्णय वैश्विक एवं आंतरिक प्रभावों द्वारा निर्धारित होते हैं।
भू-राजनीति
एकदेश की अवस्थिति एवं भौतिक स्थलाकृति उस राज्य की विदेश नीति पर बेहद महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। प्राकृतिक सीमाओं की उपस्थिति एक देश को सुरक्षा का भाव प्रदान करती है जो शांतिपूर्ण समय में घरेलू विकास पर ध्यान दे सकता है। अधिकतर देशों के लिए द्विपीयता संभव नहीं है जैसाकि उनकी सीमा से कई देश लगे होते हैं और उनके पास अंतरराष्ट्रीय मामलों से असंलग्न रहने का विकल्प नहीं होता है।
सैन्य क्षमता
मतभेदों में बल प्रयोग अंतिम तौर पर किया जाता है, लेकिन जिस देश के पास भारी एवं सुसज्जित सैन्य बल होता है उसे विश्व स्तर पर अन्य खिलाड़ियों से अधिक सम्मान प्राप्त होता है। इस प्रकार सैन्य क्षमता विदेश नीति निर्णय का एक कारक है। एक सैन्य रूप से सशक्त देश इस दृष्टिकोण से अक्षम देशों की अपेक्षा विश्वासपूर्ण एवं कठोर निर्णय ले सकता है।
आर्थिक शक्ति
आज, पूर्व की अपेक्षा, आर्थिक प्रगति का स्तरएकदेश को इसके विदेश नीति निर्णयों में बेहद प्रभावी बनाती है। आज कोई देश बेहद कमजोर अपनी सैन्य क्षमता की वजह से नहीं अपितु आर्थिक कमजोरी के कारण कहा या माना जाता है। अमीर देश सीमा पार भी अपने हित रखते हैं, और अपने राष्ट्र की बेहतरी के लिए उनका संरक्षण करते हैं। इस बात का कोई आशय नहीं है कि जो देश औद्योगिक रूप से अग्रणी है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में प्रभुत्व रखता है, आवश्यक रूप से सैन्य तौर पर भी सशक्त हो (सैन्य शक्ति अधिकांशतः आर्थिक क्षमताओं पर निर्भर करती है)।
सरकार का स्वरूप
सरकार का स्वरूप प्रायः विदेश नीति परद को सीमित करता है जिसमें बल प्रयोग धमकी के लिए प्रयोग किया जाता है या वास्तविक तौर पर किया जाता है, शामिल है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में, जनमत, दवाव समूहों एवं जनसंचार की नीति-निर्माण प्रक्रिया में एक बड़ी भूमिका होती है। लोकतांत्रिक राज्यों में, निर्वाचन व्यवस्था भी विदेश नीति निर्णयों में प्रभाव रखती है, जैसाकि नेता सामान्यतया ऐसे निर्णय लेंगे जिससे लोग उनसे दूर नहीं। एक निरंकुश व्यवस्था में अधिकतर निर्णय शासक के अनुसार होते हैं, वे ऐसी नीतियां बनाते हैं या निर्णय लेते हैं जैसा वे राज्य के हित में सही समझते हैं।
आतंरिक बाध्यताएं
न केवल अंतरराष्ट्रीय घटनाएं अपितु घरेलू घटनाक्रम भी विदेश नीति के स्रोत के तौर पर कार्य करता है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब शासकों ने विदेश में घरेलू उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कठोर एवं सशक्त विदेश नीति संबंधी निर्णय लिए हैं। उदाहरणार्थ, देश में निर्वाचन परिणामों को प्रभावित करने या फिर देश को नाजुक आर्थिक हालत से लोगों का ध्यान हटाने के लिए ऐसा किया गया है। यह युद्ध का विचलन सिद्धांत है।