भारतीय व्यंजनों की लोकप्रियता कैसे प्रकट होती है?
Answers
Answer:
देर से ही सही, अमेरिका में भारतीय भोजन की लोकप्रियता रफ्तार पकड़ रही है। भारत के कुछ ख्यात रेस्तराँ अमेरिका में भी अपनी शाखाएँ खोल रहे हैं। कई अमेरिकी मूल के रेस्तराँ भी अपने मेन्यू में भारतीय सामग्री शामिल कर रहे हैं। नामचीन भारतीय शेफ अमेरिका में अपनी सेवाएँ देने जा रहे हैं। स्थान विशेष के भोजन की बात करें, तो विशेषज्ञों के अनुसार अमेरिका में भारतीय भोजन का बाजार सबसे तेजी से फैल रहा है और इसे फैलाने में गैर-भारतीयों का भी हाथ है।
ग्लोबलाइजेशन के साथ जैसे-जैसे दुनिया छोटी होती जा रही है, उसकी रसोई भी मानो साझी होती जा रही है। विभिन्न देशों के लोग जहाँ एक-दूसरे से और एक-दूसरे की संस्कृति व तौर-तरीकों से परिचित होते जा रहे हैं, वहीं वे एक-दूसरे के खानपान में भी रुचि ही नहीं ले रहे, बल्कि उसे अपना भी रहे हैं।
चाइनीज, लेबनीज, मेक्सिकन, इटैलियन, थाई आदि भोजन ने कुछ दशक पहले अपने-अपने देश की सरहदें पार कर अंतरराष्ट्रीय दावतों में शिरकत करना शुरू किया। धीरे-धीरे इनका स्वाद अन्य देशों, खास तौर पर योरप व अमेरिका के वासियों की जुबान पर चढ़ने लगा।
विदेशी भोजन परोसने वाले रेस्तराँ पहले एक-दो, फिर दस-बारह की संख्या में खुलने लगे। जब विदेशी स्वाद का चस्का और परवान चढ़ा तथा इसने एक बड़ा बाजार निर्मित कर दिया, तो रेस्तराँओं की अंतरराष्ट्रीय श्रृंखलाएँ चल पड़ीं।
ND
इधर स्वाद और वैविध्य में बेजोड़ भारतीय भोजन ने व्यावसायिक तौर पर देश की सीमाएँ जरा देर से लाँघीं। हाँ, भारत पर शासन कर चुके अँगरेज यहाँ के स्वाद के मुरीद हो चुके थे और ब्रिटिश शासन के दौरान ही लंदन के चुनिंदा उच्चवर्गीय इलाकों में कुछेक भारतीय रेस्तराँ स्थापित हो गए थे। यहाँ छुट्टियों में घर लौटे अँगरेज अफसर आ पहुँचते थे, जब उन्हें भारतीय व्यंजनों की याद सताने लगती। फिर आजादी के बाद साठ के दशक में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में ब्रिटेन जाने लगे। इनमें से कई ने वहाँ 'भारतीय रेस्तराँ' शुरू किए।
मजेदार बात यह है कि इन रेस्तराँओं में भारतीयों के मुकाबले बांग्लादेशी मालिकों और कर्मचारियों की संख्या ज्यादा थी! यही नहीं, इस दौर में वहाँ कुछ ऐसे व्यंजन भी इंडियन डिश के नाम पर ईजाद कर लिए गए, जिनके बारे में भारत में किसी ने सुना तक नहीं था। कारण यह कि ऐसे कोई डिश भारतीय भोजन का हिस्सा कभी थे ही नहीं!
' चिकन टिक्का मसाला' इसी का उदाहरण है, जिसकी दीवानगी अँगरेजों के सिर चढ़कर बोली है। अब स्थिति में बदलाव आया है और मौलिक भारतीय, पाकिस्तानी तथा बांग्लादेशी डिश मेन्यू में शामिल करने पर जोर बढ़ा है।
ND
उधर जैसे-जैसे अमेरिका और कनाडा में जाकर बसने वाले भारतीयों की संख्या बढ़ने लगी, वहाँ भी भारतीय रेस्तराँ उद्योग ने जोर पकड़ा। अँगरेजों का तो भारतीय भोजन से 'पहले का नाता कोई' था मगर अमेरिकियों को इसे आजमाने का मन बनाने में जरा वक्त लगा। धीरे-धीरे वहाँ भी भारतीय रेस्तराँओं की संख्या तो बढ़ने लगी लेकिन जहाँ चीनियों, इतालवियों, मेक्सिकनों, जापानियों और यहाँ तक कि कोरियाइयों ने भी अमेरिका में अपने यहाँ के रेस्तराँओं की श्रृंखलाएँ खोल ली थीं, वहीं भारतीय रेस्तराँओं की कोई स्तरीय श्रृंखला का वहाँ अभाव था।
' एमीज किचन' नामक कंपनी का ही उदाहरण लें। इसे एंडी और रेचल बर्लिनर ने ऑर्गेनिक डिब्बाबंद भोजन उपलब्ध कराने के इरादे से शुरू किया था। फिलहाल वे छः भारतीय व्यंजन डिब्बाबंद रूप में बनाते हैं। इनकी बदौलत पालक पनीर, पनीर टिक्का, मटर पनीर, वेजिटेबल कोरमा जैसी डिश अमेरिकियों को तैयार मिलती हैं। बस, पैकेट खोलो, गर्म करो और खा लो!
उधर भारतीय पिता और अमेरिकन माता की संतान माया कायमल भारतीय शैली की विभिन्न प्रकार की तरी बनाकर 7 डॉलर प्रति पैकेट के हिसाब से बेचती हैं, जिनमें आप अपने हिसाब से सब्जियाँ या मीट डालकर पका सकते हैं। ये तरियाँ इतनी लोकप्रिय हो गई हैं कि माया की कंपनी 20 लाख डॉलर सालाना कमा रही है! अब कई अमेरिकी शेफ भी भारतीय व्यंजनों को अपना रहे हैं और इनकी बदौलत अधिक से अधिक अमेरिकी हिंदुस्तानी खाने से वाकिफ हो रहे हैं।
please mark as brainlist
Explanation: