भारतीय व यूनानी मिश्रण से किस शैली की मूर्तिकला का विकास हुआ था?
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प्राचीन विश्व में कला के क्षेत्र में भारत का प्रतिष्ठित स्थान है। जहाँ एक ओर यवन मानव शरीर की दैहिक सुंदरता, मिस्र के लोग अपने पिरामिड की भव्यता और चीनी लोग प्रकृति की सुंदरता को दर्शाने में सर्वोपरि थे, वहीं भारतीय अपने अध्यात्म को मूर्तियों में ढालने का प्रयास करने में अद्वितीय थे; वह अध्यात्म जिसमें लोगों के उच्च आदर्श और मान्यताएँ निहित थीं।
पाषाण काल में भी मनुष्य अपने पाषाण उपकरणों को कुशलतापूर्वक काट-छाँटकर या दबाव तकनीक द्वारा आकार देता था, परंतु भारत में मूर्तिकला अपने वास्तविक रूप में हड़प्पा सभ्यता के दौरान ही अस्तित्व में आई।
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JaI HinD
JaI BhaRat
भारतीय व यूनानी मिश्रण से किस शैली की मूर्तिकला का विकास हुआ था?
भारत एवं यूनानी मिश्रण से 'गांधार शैली' की मूर्ति कला का विकास हुआ था।
गांधार शैली की मूर्ति कला कुषाण काल में विकसित हुई थी। यह मूर्ति कला विशुद्ध रूप से बौद्ध धर्म से संबंधित थी। ये मूर्तिकला प्रस्तर मूर्ति कला शैली थी। इस मूर्तिकला का आरंभ कुषाण राजा कनिष्क प्रथम के समय में हुआ, जो पहली शताब्दी में कुषाण वंश का राजा था।
गंधार शैली की मूर्तिकला के अंतर्गत अफगानिस्तान की स्वात घाटी में भूरे रंग के पत्थरों या काले स्लेटी पत्थरों की मूर्तियों का निर्माण किया गया। गांधार शैली की मूर्तियों में भगवान बुद्ध की मूर्तियां बनाई जाती थी जिनमें कोई मूर्ति उनके आसन यानी बैठे हुए रूप में अथवा कोई मूर्ति स्थापना खड़े हुए रूप में बनाई जाती थी। यह पूरी तरह भारत और यूनानी मूर्तिकला का मिश्रण थी।
गांधार मूर्तिकला कुषाण काल में पूरी तरह पनपी। इसे हिंद-यूनानी अथवा ग्रीको-रोमन कला भी कहा जाता था। इसे इंडो-होलेनिक अथवा ग्रीक-बुद्धिस्ट कला भी कहा जाता है।
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