भारतीय वनों के प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
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वनों का महत्व दुनियां का कोई भी देश हो उनके विकास में वनों का बहुत बड़ा योगदान होता हैं। वन संपदा के के कारण उनके आर्थिकी विकास को गति मिलती हैं। भारत जैसे देशों में पेड़ों की पूजा की जाती हैं. प्राचीन समय में इस देश के ऋषि मुनियों द्वारा पेड़ों की छाव में ही अपने आश्रमों की स्थापना की जाती हैं। विश्व में वन संपदा का बड़ा महत्व हैं ये हमें कई सारी चीजे भेट करते हैं, जिनमें ईधन के लिए लकड़ी, औषधि तथा ईमारती लकड़ी मुख्य वन उत्पाद हैं। कई सारे उद्योग वन उत्पाद ही निर्भर हैं, उन्हें कच्चे माल की प्राप्ति वनों द्वारा ही प्राप्त होती हैं. इसलिए कहा जाता हैं वन ही जीवन है।
भू क्षेत्र जहाँ वृक्षों का घनत्व सामान्य से अधिक है उसे वन (जंगल) कहते हैं। विभिन्न मापदंडों पर आधारित जंगल की कई परिभाषाएँ हैं । वनों ने पृथ्वी के लगभग 9.5% भाग को घेर रखा है जो कुल भूमिक्षेत्र का लगभग 30% भाग है। एक समय कभी वन कुल भूमिक्षेत्र के 50% भाग में फैल हुए थे। वन, जीव जन्तुओं के लिए आवासस्थल हैं और पृथ्वी के जल-चक्र को नियंत्रित और प्रभावित करते हैं और मृदासंरक्षण का आधार हैं इसी कारण वन पृथ्वी के जैवमण्डल का अहम हिस्सा हैं। वन धरती के सबसे प्रमुख स्थलीय परितंत्र भी हैं। वन, धरती के जीव-मडंल के कुल सकल प्राथमिक उत्पाद के 75% भाग लिए हैं । धरती की 80% वनस्पतियाँ वनों में पाई जाती हैं। अलग अलग ऊंचाइयों पर स्थित वन विभिन्न परितंत्रों का निर्माण करते हैं- जैसे ध्रुवों के निकट बोरील वन, भूमध्य रेखा के निकट उष्ण कटिबन्धीय वन और मध्यम ऊंचाइयों पर शीतोष्ण वन। किसी क्षेत्र की ऊंचाई और वहां मौजूद नमी उस क्षेत्र में पाए जाने वाले वृक्षों पर प्रभाव डालती है। मानव और वन एक दूसरे पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रभाव डालते हैं। वन जहाँ मनुष्य को अनेक प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध कराते हैं वहीं वे आमदनी का एक स्त्रोत भी हैं।
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