भारतीय योजानाओ के निर्माता महालनोबिस की कयो जाता है
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2016 में नोटबंदी के दूरगामी परिणाम होने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जॉन मेनार्ड कींस की पंक्तियां दोहराई थीं. इस महान अर्थशास्त्री ने कभी कहा था, ‘इन द लॉन्ग रन वी आर आल डेड.’ नसीहत आज की मुसीबतों को सहकर दूर भविष्य के फायदे गिनाने वालों के लिए थी कि दूर भविष्य में तो हममें से कोई नहीं होगा.
यहां एक ऐसे शख्स का ज़िक्र हो रहा है जिसने दूर भविष्य में नहीं बल्कि बहुत जल्द देश की आर्थिक तस्वीर बदलने की ठानी थी. वे थे सांख्यिकी के विद्वान और भारत की दूसरी पंचवर्षीय योजना के सूत्रधार प्रशांत चंद्र महालनोबिस. जवाहरलाल नेहरू और पीसी महालनोबिस की जोड़ी कुछ ऐसी थी जैसी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की. बस फ़र्क इतना ही है कि महालनोबिस वित्त मंत्री नहीं थे.
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शुरूआती जीवन
रबींद्रनाथ टैगोर के साहित्य की व्याख्या ख़ुद टैगोर से बेहतर करने वाले प्रशांत चंद्र महालनोबिस की आरंभिक शिक्षा बंगाल में हुई. विज्ञान में स्नातक करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए घरवालों ने उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन भेज दिया. बताया जाता है कि एक बार वे कैंब्रिज शहर घूमने गए. वहां उन्हें किंग्स कॉलेज भा गया. उसी रात उनकी वापसी की ट्रेन छूट गयी. अगले दिन उन्होंने किंग्स कॉलेज में दाख़िला ले लिया और वहां से भौतिकी में डिग्री हासिल की.
पीसी महालनोबिस का भारत वापसी का सफ़र उनके जीवन का एक निर्णायक मोड़ था. पहला विश्व युद्ध शुरू हो चुका था. समुद्री रास्ते कुछ और मुश्किल हो गए थे. जिस जहाज से उन्हें हिंदुस्तान आना था, उसे कुछ दिनों की देर हो गई. वक़्त गुज़ारने के लिए कैंब्रिज पुस्तकालय महालनोबिस की पसंदीदा जगह थी. वहां उन्होंने बायोमेट्रिक्स से जुड़ी एक क़िताब पढ़ी और फिर वापसी के सफ़र के लिए बायोमेट्रिक्स पर पूरा साहित्य ही उठा लाये. कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में उन्हें पार्ट टाइम नौकरी मिल गई. यह साल था 1922. बायोमेट्रिक्स पढ़कर सांख्यिकी से उनका जो लगाव हुआ, वह फिर ताउम्र रहा.
सांख्यिकी से प्रेम