भारतवर्ष के महान्-वीर, त्यागी और बलिदानी महापुरुषों में पितामह भीष्म का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे
महाराजा शांतनु और मार गंगा के इकलति पुत्र थे। उनके बचपन का नाम देवव्रत था। पुत्र को जन्म देकर गंगा अपने लोक को
पली गई तो महाराजा शांतनु पत्नी वियोग में दुःखी रहने लगे। एक दिन गंगा के किनारे उन्होंने मल्लाहों के प्रमुख दाशराज की
पुत्री सत्यवती को देखा। सत्यवती अति रूपवती युवती थी। शांतनु ने सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा
किंतु दशराज ने यह शर्त रख दी कि यदि महाराज उत्तराधिकार में सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का वायदा करें तो सत्यवती ते
महाराज का विवाह कर दूगा। राजा यह शर्त स्वीकार न कर सके और सत्यवती के लिए व्याकुल रहने लगे। देवव्रत ने जब पिता
की उदासी का कारण जाना तो उन्होंने का कारण जाना तो उन्होंने दाशराज के सम्मुख आजीवन ब्रहमचारी रहने की प्रतिज्ञा
की जिससे कि सत्यवती के पुत्र को राज्याधिकार प्राप्त करने में कोई अड़चन न जाए। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत को
भीष्म कहा जाने लगा।
महाराजा शांतनु का सत्यवती से विवाह हुआ और उससे उनके दो पुत्र हुए-चित्रागंद और विचित्रवीर्य। चित्रागंद निःस्तान मरे
और विचित्रवीर्य को धृतराष्ट्र जन्माध थे अतः राजगद्दी पाडु को प्राप्त हुई। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र हुए जिनमें दुर्योधन सबसे बर्ड
था। पांडु के क्रमशः युद्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव तथा पांडु के पुत्र पांडय कहे
जाते थे। अर्जुन धनुर्विद्या में, भीम मल्लयज्ञ में अद्वितीय थे। दुर्योधन पाड़यों से ईष्या रखता था। भीष्म ने इन राजकुमारों की
शिक्षा-दीक्षा का उचित प्रबंध किया था। भीष्म उनके पितामह लगते थे इसलिए उन्हें भीष्म पितामह कहा जाने लगा।
१. शांतनु कौन था?
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hlo kaise ho aap good morning
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