Hindi, asked by reshamviswanath, 4 months ago

भारतवर्ष ने अपने मन और बुद्धि को किस बंधन से बांधकर रखने का
प्रयत्न किया है ?​

Answers

Answered by nikhilkadam1234
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bhagavad geeta

मूल श्लोकः

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।

मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।

 

Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas

।।3.42।। व्याख्या   इन्द्रियाणि पराण्याहुः शरीर अथवा विषयोंसे इन्द्रियाँ पर हैं। तात्पर्य यह है कि इन्द्रियोंके द्वारा विषयोंका ज्ञान होता है पर विषयोंके द्वारा इन्द्रियोंका ज्ञान नहीं होता। इन्द्रियाँ विषयोंके बिना भी रहती हैं पर इन्द्रियोंके बिना विषयोंकी सत्ता सिद्ध नहीं होती। विषयोंमें यह सामर्थ्य नहीं कि वे इन्द्रियोंको प्रकाशित करें प्रत्युत इन्द्रियाँ विषयोंको प्रकाशित करती हैं। इन्द्रियाँ वही रहती हैं पर विषय बदलते रहते हैं। इन्द्रियाँ व्यापक हैं और विषय व्याप्य हैं अर्थात् विषय इन्द्रियोंके अन्तर्गत आते हैं पर इन्द्रियाँ विषयोंके अन्तर्गत नहीं आतीं। विषयोंकी अपेक्षा इन्द्रियाँ सूक्ष्म हैं। इसलिये विषयोंकी अपेक्षा इन्द्रियाँ श्रेष्ठ सबल प्रकाशक व्यापक और सूक्ष्म हैं।इन्द्रियेभ्यः परं मनः इन्द्रियाँ मनको नहीं जानतीं पर मन सभी इन्द्रियोंको ही जानता है। इन्द्रियोंमें भी प्रत्येक इन्द्रिय अपनेअपने विषयको ही जानती है अन्य इन्द्रियोंके विषयोंको नहीं जैसे कान केवल शब्दको जानते हैं पर स्पर्श रूप रस और गंधको नहीं जानते त्वचा केवल स्पर्शको जानती है पर शब्द रूप रस और गन्धको नहीं जानती नेत्र केवल रूपको जानते हैं पर शब्द स्पर्श रस और गन्धको नहीं जानते रसना केवल रसको जानती है पर शब्द स्पर्श रूप और गन्धको नहीं जानती और नासिका केवल गन्धको जानती है पर शब्द स्पर्श रूप और रसको नहीं जानती परन्तु मन पाँचों ज्ञानेन्द्रियोंको तथा उनके विषयोंको जानता है। इसलिये मन इन्द्रियोंसे श्रेष्ठ सबल प्रकाशक व्यापक और सूक्ष्म है।मनसस्तु परा बुद्धिः मन बुद्धिको नहीं जानता पर बुद्धि मनको जानती है। मन कैसा है शान्त है या व्याकुल ठीक है या बेठीक इत्यादि बातोंको बुद्धि जानती है। इन्द्रियाँ ठीक काम करती हैं या नहीं इसको भी बुद्धि जानती है तात्पर्य है कि बुद्धि मनको तथा उसके संकल्पोंको भी जानती है और इन्द्रियोँको तथा उनके विषयोंको भी जानती है। इसलिये इन्द्रियोँसे पर जो मन है उस मनसे भी बुद्धि पर (श्रेष्ठ बलवान् प्रकाशक व्यापक और सूक्ष्म) है।य बुद्धेः परतस्तु सः बुद्धिका स्वामीअहम् है इसलिये कहता है मेरी बुद्धि। बुद्धि करण है औरअहम् कर्ता है। करण परतन्त्र होता है पर कर्ता स्वतन्त्र होता है। उसअहम्में जो जडअंश है उसमेंकाम रहता है। जडअंशसे तादात्म्य होनेके कारण वह काम स्वरूप(चेतन) में रहता प्रतीत होता है।वास्तवमेंअहम्में

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