भारतवषरसदा क़ानून को धमरके रप मेदेखता आ रहा है। आज एकाएक क़ानून और धमरमेअंतर कर िदया
गया है। धमरको धोखा नही िदया जा सकता,क़ानून को िदया जा सकता है।यही कारण हैिक जो लोग
धमरभीर है, वेक़ानून की तुिटयो सेलाभ उठानेमेसंकोच नही करते।इस बात के पयारप पमाण खोजेजा
सकतेहैिक समाज के ऊपरी वगरमेचाहेजो भी होता रहा हो, भीतर-भीतर भारतवषर अब भी यह अनुभव कर
रहा हैिक धमर, क़ानून सेबड़ी चीज़ है। अब भी सेवा,ईमानदारी,सचाई और आधाितकता के मूल बनेहए
है। वेदब अवश गए है, लेिकन नष नही हए। आज भी वह मनुष सेपेम करता है, झू
ठ और चोरी को ग़लत
समझता है, मिहलाओ ंका समान करता है, दूसरो को पीड़ा पहँचानेको पाप समझता है। हर आदमी अपने
विकगत जीवन मेइस बात का अनुभव करता है।
(1)पसुत गदांश का उिचत शीषरक िलिखए।
(2)क़ानून को धमरके रप मेदेखनेका का आशय है?
(3)भारतवषरके लोग धमरकी िकन बातो को आज भी मानतेहै?
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