बहुसंख्यकवाद की निरंकुशता' से क्या तात्पर्य होता है?
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संभ्रांत वर्ग या ऍलीट (elite) समाजशास्त्र और राजनीति में किसी समाज या समुदाय में उस छोटे से गुट को कहते हैं जो अपनी संख्या से कहीं ज़्यादा धन, राजनैतिक शक्ति या सामाजिक प्रभाव रखता है। लेकिन ऐसा कदापि नहीं है की जो धन, बल में श्रेष्ठ है वो सम्भ्रांत है। सम्भ्रांत का अर्थ वास्तव में किसी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति के सम्पन्न होने से होता है। भले ही उसके पास धन, बल ना हो किंतु यदि वो समाज में अपने आचार-विचार के द्वारा लोगों को प्रभावित कर सकता हो और लोग उसकी कही बात, व्यवहार को अमल करते हों तो वो सही मायने में सम्भ्रांत है। सम्भ्रांत का सही मायने में अर्थ सकारात्मक और सही तरीक़े अपना कर समाज में अपनी जगह बनाए जाने वाले के लिए ही इस्तेमाल होता है। अकसर लोग english में elite को सम्भ्रांत समझते हैं जबकि सम्भ्रांत कहीं ज़्यादा व्यापक दायरा रखता है। इसको महज़ धन बल से नहीं मापा जाना चाहिए।[1] समाज के अन्य वर्गों की तुलना में संभ्रांत वर्ग अपने क्षेत्र में अधिक शक्तिशाली होता है।[2]
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'बहुसंख्यकवाद की निरंकुशता' से क्या तात्पर्य होता है ?