Social Sciences, asked by naazsania32, 2 months ago

बहुसंख्यकवाद के श्रीलंका में बढ़ने के क्या क्या परिणाम रहे ​

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Answered by khushboopathak8115
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सिंहली समुदाय के नेताओं ने अपनी बहुसंख्या के बल पर शासन पर प्रभुत्व जमाना चाहा और इसके लिए उन्होने बहुसंख्यक परस्ती के तहत कर्इ कदम उठाइए। (B) सन् 1956 में एक कानून बनाया गया जिसके तहत तमिल को दरकिनार करके सिंहली को एकमात्रा राजभाषा घोषित कर दिया गया। ...मुस्लिम विरोधी दंगों की वजह से बीते छह मार्च को श्रीलंका सरकार ने अंपारा और कैंडी जिले के कई हिस्सों में एक सप्ताह के लिए आपात स्थिति की घोषणा कर दी. देश की संसद में दिये अपने बयान में श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने इस मजहबी हिंसा के लिए सिंहली उग्रवादी समूहों को जिम्मेदार ठहराते हुए उन पर दुकानें क्षतिग्रस्त करने तथा संपत्तियों और मस्जिदों में आग लगाने के आरोप लगाये.

इन मुस्लिम विरोधी दंगों की शुरुआत 22 फरवरी को तब हुई, जब तड़के दो बजे एक स्थानीय पेट्रोल पंप पर ईंधन लेने पहुंचे बहुसंख्यक सिंहली समुदाय के एक ट्रक ड्राइवर पर चार मुस्लिम युवकों ने हमला कर दिया. कैंडी जनरल अस्पताल में भर्ती जख्मी ड्राइवर की तीन मार्च को मृत्यु हो गयी. हालांकि, पुलिस ने इस घटना में संलिप्त चार संदिग्धों को गिरफ्तार कर लिया, पर सिंहली उग्रवादियों ने इसे सांप्रदायिक रंग देते हुए मुसलिम समुदाय के विरुद्ध हिंसा छेड़ दी, जिसमें दो व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी.

श्रीलंका में विभिन्न समुदायों के बीच नफरत पैदा करने के लिए सोशल मीडिया के सहारे संगठित ढंग से झूठी और गुमराह करनेवाली अफवाहें फैलायी जा रही हैं. आपातस्थिति की घोषणा के बाद श्रीलंका की सरकार ने फेसबुक तथा व्हाट्सएप सहित सोशल मीडिया पर 72 घंटों के लिए रोक लगा डाली.

जातीय संघर्षों ने भी किया योगदान

तीस वर्षों तक रक्तरंजित संघर्ष का अनुभव करने के बावजूद, सांप्रदायिक हिंसा का फैल जाना श्रीलंका के समाज में मौजूद नाजुक धार्मिक संबंधों का सूचक है. श्रीलंका में तमिल उग्रवाद और उसके बाद के जातीय संघर्ष के लिए आजादी के बाद वहां आयी बहुमत की विभिन्न सरकारों द्वारा भेदभावपूर्ण नीतियों का अवलंबन तथा अल्पसंख्यक समुदाय के हकों और हितों की अनदेखी ही जिम्मेदार रही है. श्रीलंका की कुल लगभग 2.1 करोड़ की आबादी में मुस्लिमों की संख्या 9-10 प्रतिशत है.

जातीय संघर्ष के दौरान लिट्टे उग्रवादियों के व्यवस्थित हमलों से मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पीड़ाएं झेलीं. मुस्लिम हितों के रक्षा के लिए श्रीलंकाई मुस्लिम कांग्रेस जैसे मुस्लिम सियासी दलों ने श्रीलंकाई सरकार के अंदर मंत्रियों समेत विभिन्न पद स्वीकार कर अल्पसंख्यक समुदायों को विभाजित रखने की उसकी नीतियों का साथ दिया.

राजपक्षे शासन के अंतर्गत तीव्र सैन्य संघर्ष के बाद 2009 में लिट्टे की पराजय और जातीय संघर्ष की समाप्ति से भी श्रीलंका में शांति और स्थिरता स्थापित नहीं हो सकी, क्योंकि इस युद्ध के नतीजन बड़े पैमाने के विस्थापन, जन-धन हानि और मानवाधिकार उल्लंघन हुए. युद्धोत्तर श्रीलंका में मुस्लिमों को एक अन्य अल्पसंख्यकों के रूप में चित्रित किया जाने लगा और 2012 से उन पर 'बोदु बाला सेना' जैसे सिंहली कट्टरवादी समूहों द्वारा समर्थित व्यवस्थित हमले आरंभ हो गये.

वर्ष 2014 में दक्षिणी श्रीलंकाई तटीय शहरों में बौद्धों तथा मुस्लिमों के बीच हिंसा भड़क उठी, जिसमें संपत्तियों को पहुंची क्षति के अलावा दो व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी और 75 लोग जख्मी हो गये.

वर्ष 2015 में शांति, समझौते और आर्थिक विकास के आधार पर अल्पसंख्यक तमिल एवं मुस्लिम पार्टियों के साथ मुख्य सिंहली पार्टी, श्रीलंका फ्रीडम पार्टी तथा यूनाइटेड नेशनल पार्टी के हाथ मिलाने के फलस्वरूप राष्ट्रीय एकता सरकार सत्ता में आयी. इस सरकार ने संवैधानिक सुधारों के द्वारा मेलमिलाप की दिशा में सकारात्मक पहलकदमी की. पहली बार राज्य का स्वरूप, उत्तरी और पूर्वी प्रदेशों के विलय तथा सत्ता के हस्तांतरण जैसे विवादास्पद मुद्दों पर सार्वजनिक राय ली गयी.

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