भाषा, बोली, लिपि तथा व्याकरण
(ग) सार्थक ध्वनि नहीं है- पुस्तक, मकलक, धरती, पूर्णिमा
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भाषा मूलतः ध्वनि-संकेतों की एक व्यवस्था है, यह मानव मुख से निकली अभिव्यक्ति है, यह विचारों के आदान-प्रदान का एक सामाजिक साधन है और इसके शब्दों के अर्थ प्रायः रूढ़ होते हैं। भाषा अभिव्यक्ति का एक ऐसा समर्थ साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को दूसरों पर प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार जान सकता है।
अतः हम कह सकते हैं कि 'भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए रूढ़ अर्थों में प्रयुक्त ध्वनि संकेतों की व्यवस्था ही भाषा है।'
प्रत्येक देश की अपनी एक भाषा होती है। हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी है। संसार में अनेक भाषाएँ हैं। जैसे- हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बँगला, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, फ्रैंच, चीनी, जर्मन इत्यादि।
• भाषा के प्रकार-
भाषा दो प्रकार की होती है -
1. मौखिक भाषा।
2. लिखित भाषा।
- आमने-सामने बैठे व्यक्ति परस्पर बातचीत करते हैं अथवा कोई व्यक्ति भाषण आदि द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तो उसे भाषा का मौखिक रूप कहते हैं।
- जब व्यक्ति किसी दूर बैठे व्यक्ति को पत्र द्वारा अथवा पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं में लेख द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तब उसे भाषा का लिखित रूप कहते हैं।
• बोली:
जिस क्षेत्र का आदमी जहाँ रहता है, उस क्षेत्र की अपनी एक बोली होती है। वहाँ रहने वाला व्यक्ति, अपनी बात दूसरे व्यक्ति को उसी बोली में बोलकर कहता है तथा उसी में सुनता है। जैसे-शेखावाटी (झुन्झुनू, चुरू व सीकर) के निवासी ‘शेखावाटी’ बोली में कहते हैं एवं सुनते हैं। इसी प्रकार कोटा और बूँदी क्षेत्र के निवासी ‘हाड़ौती’ में; अलवर क्षेत्र के निवासी ‘मेवाती’ में; जयपुर क्षेत्र के निवासी ‘ढूँढ़ाड़ी’ में; मेवाड़ के निवासी ‘मेवाड़ी’ में तथा जोधपुर, बीकानेर और नागौर क्षेत्रों के निवासी ‘मारवाड़ी’ में अपनी बात दूसरे व्यक्ति को बोलकर कहते हैं तथा दूसरे व्यक्ति की बात सुनकर समझते हैं।
अतः भाषा का वह रूप जो एक सीमित क्षेत्र मेँ बोला ज ा ए, उसे बोली कहते हैं। कई बोलियों तथा उनकी समान बातों से मिलकर भाषा बनती है। बोली व भाषा का बहुत गहरा संबंध है।
भाषा का क्षेत्रीय रूप बोली कहलाता है। अर्थात् देश के विभिन्न भागों में बोली जाने वाली भाषा बोली कहलाती है और किसी भी क्षेत्रीय बोली का लिखित रूप में स्थिर साहित्य वहाँ की भाषा कहलाता है।