भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों के जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज़ से यह कहानी अद्भुत है। कहानी में से ऐसे उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य अधिक असरदार बना है?
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भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों के जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज़ से यह कहानी अद्भुत है।भाषा की चित्रात्मकता के उदहारण है-
->वंशीधर पर व्यंग्य बाणों की बौछार।
->दारोगा जी किबाड़ बंध किये मीठी नींद से सो रहे थे।
->चापरासियो का झुक झुक कर सलाम करना।
कहावतों और मुहावरों का प्रयोग-
->फुले नही समाये
->सिर पीटना
->हाथ मलना
हिंदी-उर्दू के साझा रूप-
->बेरोजगारों को दांव पर लगाना मुश्किल है।
->इन चीजों को आंख में बांध लें।
बोलचाल की भाषा-
->बाबू साहब, ऐसा मत कीजिए, हम गायब हो जाएंगे।
उपोरोक्त विशेषण के प्रयोग से कल्पित कहानी बास्तविक लग रहा है
भाषा की चित्रात्मकता , लोकोक्तियों और मुहावरों के जानदार उपयोग तथा हिन्दी उर्दू के साझा रूप एवम् बोलचाल की भाषा के लिहाज़ से यह कहानी अदभुत है। कहानी के ऐसे उदाहरण निम्नलिखित है।
भाषा की चित्रत्मकता -
• वकीलों का फैसला दिनकर उछल पड़ना।
• चपरासियों का झुक झुक कर सलाम करना।
• वंशीधर पर व्यंग्य बाणों की बौछार।
उपुर्युक्त तथ्य तब के है जब ईमानदार दरोगा को झूठ बोलकर नौकरी से निकाला गया था।
लोकोक्तियों व मुहावरों का प्रयोग
• कगारे का वृक्ष
• सिर पीट लेना
• हाथ मलना
•मुंह छिपाना
हिंदी उर्दू का साझा रूप
• बेगरज को दांव पर पाना जरा कठिन है।
बोल चाल की भाषा
• कौन पंडित अलोपीदीन ? दातागंज के
• क्या करे , लड़का अभागा कपूत है।
उपरोक्त दी गई विशेषताओं के कारण भाषा में सजगता व सजीवता आ गई है।इस कारण कहानी वास्तविक लग रही है।