'भाषा के विविध रूपों पर प्रकाश डालिए। in 800 words
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भाषा का सर्जनात्मक आचरण के समानान्तर जीवन के विभिन्न व्यवहारों के
अनुरूप भाषिक प्रयोजनों की तलाश हमारे दौर की अपरिहार्यता है। इसका
कारण यही है कि भाषाओं को सम्प्रेषणपरक प्रकार्य कई स्तरों पर और कई
सन्दर्भों में पूरी तरह प्रयुक्ति सापेक्ष होता गया है। प्रयुक्ति और प्रयोजन से
रहित भाषा अब भाषा ही नहीं रह गई है।
भाषा की पहचान केवल यही नहीं कि उसमें कविताओं और कहानियों
का सृजन कितनी सप्राणता के साथ हुआ है, बल्कि भाषा की व्यापकतर
संप्रेषणीयता का एक अनिवार्य प्रतिफल यह भी है कि उसमें सामाजिक सन्दर्भों
और नये प्रयोजनों को साकार करने की कितनी संभावना है। इधर संसार भर
की भाषाओं में यह प्रयोजनीयता धीरे-धीरे विकसित हुई है और रोजी-रोटी का
माध्यम बनने की विशिष्टताओं के साथ भाषा का नया आयाम सामने आया है :
वर्गाभाषा, तकनीकी भाषा, साहित्यिक भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, सम्पर्क भाषा,
बोलचाल की भाषा, मानक भाषा आदि।
Answer:भाषा का सर्जनात्मक आचरण के समानान्तर जीवन के विभिन्न व्यवहारों केअनुरूप भाषिक प्रयोजनों की तलाश हमारे दौर की अपरिहार्यता है। इसकाकारण यही है कि भाषाओं को सम्प्रेषणपरक प्रकार्य कई स्तरों पर और कईसन्दर्भों में पूरी तरह प्रयुक्ति सापेक्ष होता गया है। प्रयुक्ति और प्रयोजन सेरहित भाषा अब भाषा ही नहीं रह गई है।
भाषा की पहचान केवल यही नहीं कि उसमें कविताओं और कहानियोंका सृजन कितनी सप्राणता के साथ हुआ है, बल्कि भाषा की व्यापकतरसंप्रेषणीयता का एक अनिवार्य प्रतिफल यह भी है कि उसमें सामाजिक सन्दर्भोंऔर नये प्रयोजनों को साकार करने की कितनी संभावना है। इधर संसार भरकी भाषाओं में यह प्रयोजनीयता धीरे-धीरे विकसित हुई है और रोजी-रोटी कामाध्यम बनने की विशिष्टताओं के साथ भाषा का नया आयाम सामने आया है :वर्गाभाषा, तकनीकी भाषा, साहित्यिक भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, सम्पर्क भाषा,बोलचाल की भाषा, मानक भाषा आदि।
Explanation:बोलचाल की भाषा
‘बालेचाल की भाषा’ को समझने के लिए ‘बोली’ (Dialect) को समझना जरूरीहै। ‘बोली’ उन सभी लोगों की बोलचाल की भाषा का वह मिश्रित रूप हैजिनकी भाषा में पारस्परिक भेद को अनुभव नहीं किया जाता है। विश्व में जबकिसी जन-समूह का महत्त्व किसी भी कारण से बढ़ जाता है तो उसकीबोलचाल की बोली ‘भाषा’ कही जाने लगती है, अन्यथा वह ‘बोली’ ही रहतीहै।
मानक भाषा
भाषा के स्थिर तथा सुनिश्चित रूप को मानक या परिनिष्ठित भाषा कहते हैं।भाषाविज्ञान कोश के अनुसार ‘किसी भाषा की उस विभाषा को परिनिष्ठित भाषाकहते हैं जो अन्य विभाषाओं पर अपनी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक श्रेष्ठतास्थापित कर लेती है तथा उन विभाषाओं को बोलने वाले भी उसे सर्वाधिकउपयुक्त समझने लगते हैं। मानक भाषा शिक्षित वर्ग की शिक्षा, पत्राचार एवं व्यवहार की भाषा होतीहै। इसके व्याकरण तथा उच्चारण की प्रक्रिया लगभग निश्चित होती है। मानकभाषा को टकसाली भाषा भी कहते हैं। इसी भाषा में पाठ्य-पुस्तकों काप्रकाशन होता है। हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, संस्कृत तथा ग्रीक इत्यादि मानकभाषाएँ हैं।
सम्पर्क भाषा
अनेक भाषाओं के अस्तित्व के बावजूद जिस विशिष्ट भाषा के माध्यम सेव्यक्ति-व्यक्ति, राज्य-राज्य तथा देश-विदेश के बीच सम्पर्क स्थापित कियाजाता है उसे सम्पर्क भाषा कहते हैं। एक ही भाषा परिपूरक भाषा और सम्पर्कभाषा दोनों ही हो सकती है। आज भारत मे सम्पर्क भाषा के तौर पर हिन्दीप्रतिष्ठित होती जा रही है जबकि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी सम्पर्क भाषाके रूप में प्रतिष्ठित हो गई है। सम्पर्क भाषा के रूप में जब भी किसी भाषाको देश की राष्ट्रभाषा अथवा राजभाषा के पद पर आसीन किया जाता है तबउस भाषा से कुछ अपेक्षाएँ भी रखी जाती हैं।
राजभाषा
जिस भाषा में सरकार के कार्यों का निष्पादन होता है उसे राजभाषा कहते हैं।कुछ लोग राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अन्तर नहीं करते और दोनों कोसमानाथ्र्ाी मानते हैं। लेकिन दोनों के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं। राष्ट्रभाषा सारे राष्ट्रके लोगों की सम्पर्क भाषा होती है जबकि राजभाषा केवल सरकार केकामकाज की भाषा है। भारत के संविधान के अनुसार हिन्दी संघ सरकार कीराजभाषा है।
राष्ट्रभाषा
देश के विभिन्न भाषा-भाषियों में पारस्परिक विचार-विनिमय की भाषा कोराष्ट्रभाषा कहते हैं। राष्ट्रभाषा को देश के अधिकतर नागरिक समझते हैं, पढ़तेहैं या बोलते हैं। किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उस देश के नागरिकों के लिएगौरव, एकता, अखंडता और अस्मिता का प्रतीक होती है। महात्मा गांधी नेराष्ट्रभाषा को राष्ट्र की आत्मा की संज्ञा दी है। एक भाषा कई देशों कीराष्ट्रभाषा भी हो सकती है; जैसे अंग्रेजी आज अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा कनाडा़इत्यादि कई देशों की राष्ट्रभाषा है। संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जातो नहीं दिया गया हे लेकिन इसकी व्यापकता को देखते हुए इसे राष्ट्रभाषाकह सकते हैं। दूसरे शब्दों में राजभाषा के रूप में हिन्दी, अंग्रेजी की तरह नकेवल प्रशासनिक प्रयोजनों की भाषा है, बल्कि उसकी भूमिका राष्ट्रभाषा केरूप में भी है।
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