Hindi, asked by rekhadabur1996, 8 months ago

भाषा के व्यवहारिक पक्ष पर प्रकाश डालिए​

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Answered by unicorn276
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Explanation:

भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का प्रयोग करते हैं।

भाषा, मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बताई जाती है। किसी भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वर एक व्यवस्था में मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं। व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे से प्रकट करते हैं। मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बताई जाती है जैसे - बोली, जबान, वाणी विशेष।

सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है।

इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाओं के भी अनेक वर्ग-उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथवा बोलियों को रखा है। जैसे हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है।

संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है।

प्रायः भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिये लिपियों की सहायता लेनी पड़ती है। भाषा और लिपि, भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। उदाहरणार्थ पंजाबी, गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनो में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि सभी देवनागरी में लिखी जाती हैं

Answered by bhatiamona
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भाषा के व्यवहारिक पक्ष पर प्रकाश डालिए​।

भाषा का व्यवहारिक पक्ष किसी भी भाषा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष होता है। भाषा के व्यवहारिक पक्ष की बात करें तो भाषा के व्यवहारिक पक्ष के 6 रूप होते हैं, जिसके आधार पर भाषा का व्यवहारिक पक्ष तय किया जा सकता है। भाषा के इन बीमारियों में भाषा का उपयोग कौन करता है? भाषा का उपयोग किसके साथ किया जा रहा है और उसकी स्थिति क्या है? क्या कहा जा रहा है? विषय क्या है? कहने का उद्देश्य क्या है? सुनने वाले की स्थिति क्या है और कहने सुनने के लिए दोनों के पास कितना समय है? यह बात महत्वपूर्ण होती है।

भाषा के व्यवहारिक पक्ष में भाषा के प्रयोग करने वाले का स्थान सबसे पहले आता है। भाषा का स्वरूप इस बात पर निर्भर करता है कि उसका उपयोग किसके द्वारा किया जा रहा है। जिस भाषा का प्रयोग जैसा प्रयोक्ता करेगा परिभाषा भाषा का प्रयोग था जैसा होगा उसकी भाषा भी वैसी ही होगी।

भाषा के दूसरे व्यावहारिक पक्ष में श्रोता प्रमुख होता है की भाषा का उपयोग किसके साथ किया जा रहा है।

भाषा के व्यवहारिक पक्ष में तीसरी महत्वपूर्ण बात यह होती है कि भाषा का उपयोग करते समय वार्तालाप का मुख्य विषय क्या है। किस तरह की शब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है।

भाषा के व्यवहारिक पक्ष के संदर्भ में चौथी महत्वपूर्ण बात यह है की भाषा का प्रयोग जिस उद्देश्य जिस बात को कहने के लिए किया जा रहा है उसका उद्देश्य क्या है। यानी कि वक्ता एवं श्रोता के बीच जो वार्तालाप हो रहा है उस वार्तालाप का उद्देश्य क्या है।

भाषा के व्यवहारिक पक्ष की पांचवी महत्वपूर्ण बात यह है कि कहने और सुनने वाले की व्यवहारिक स्थिति कैसी है और इन दोनों की सामाजिक स्थिति पर भी भाषा का व्यवहारिक पक्ष निर्भर करता है।

भाषा का छठा एवं अंतिम व्यवहारिक पक्ष यह है कि जो भाषा कहीं जा रही है उसे कहने और सुनने के लिए कितना समय है वक्त आने कितने समय में वाकई और बताने से कितने समय में सुना एवं समझा।

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