Hindi, asked by mahising1985, 10 months ago

भाषा निबन्ध - विघार्थी और अनुशासन(400शब्द)​

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Answered by Anonymous
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Explanation:अनुशासन राष्ट्रीय जीवन के लिए बेहद जरूरी है। यदि प्रशासन, स्कूल, समाज,परिवार सभी जगह सब लोग अनुशासन में रहेंगे और अपने कर्त्तव्य का पालन करेंगे, अपनी ज़िम्मेदारी समझेंगे तो कहीं किसी प्रकार की गड़बड़ी या अशांति नहीं होगी। नियम तोड़ने से ही अनुशासनहीनता बढ़ती है तथा समाज में अव्यवस्था पैदा होती है। बड़े होकर अनुशासन सीखना कठिन है।  

अनुशासन का पाठ बचपन से परिवार में रहकर सीखा जाता है। विद्यालय जाकर अनुशासन की भावना का विकास होता है। अच्छी शिक्षा विद्यार्थी को अनुशासन का पालन करना सिखाती है। सच्चा अनुशासन ही मनुष्य को पशु से ऊपर उठाकर वास्तव में मानव बनता है। भय से अनुशासन का पालन करना सच्चा अनुशासन नहीं है और ना ही अनुशासन पराधीनता है। यह सामाजिक तथा राष्ट्रीय आवश्यकता है।  

देश में व्याप्त तमाम समस्याओं के निराकरण के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अनुशासनप्रिय होना चाहिए।  

अनुशासनप्रिय होने के लिए हमें स्वप्रेरणा के आधार पर कार्य करना होगा।  

अनुशासन से अभिप्राय नियम, सिद्धान्त तथा आदेशों का पालन करना है। जीवन को आदर्श तरीके से जीने के लिए अनुशासन में रहना आवश्यक है। अनुशासन का अर्थ है, खुद को वश में रखना।  

अनुशासन के बिना व्यक्ति पशु के समान है। विद्यार्थी का जीवन अनुशासित व्यक्ति का जीवन कहलाता है। विद्यार्थी को विद्यालय के नियमों पर चलना होता है। शिक्षक का आदेश मानना पड़ता है। ऐसा करने पर वह योग्य, चरित्रवान व आदर्श नागरिक कहलाता है।


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Answered by RAHULSEN504
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । किसी समाज के निर्माण में अनुशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । अनुशासन ही मनुष्य को श्रेष्ठता प्रदान करता है तथा उसे समाज में उत्तम स्थान दिलाने में सहायता करता है ।

विद्‌यार्थी जीवन में तो इसकी उपयोगिता और भी बढ़ जाती है क्योंकि यह वह समय होता है जब उसके व्यक्तित्व का निर्माण प्रांरभ होता है । दूसरे शब्दों में, विद्‌यार्थी जीवन को किसी भी मनुष्य के जीवनकाल की आधारशिला कह सकते हैं क्योंकि इस समय वह जो भी गुण अथवा अवगुण आत्मसात् करता है उसी के अनुसार उसके चरित्र का निर्माण होता है ।

कोई भी विद्‌यार्थी अनुशासन के महत्व को समझे बिना सफलता प्राप्त नहीं कर सकता है । अनुशासन प्रिय विद्‌यार्थी नियमित विद्‌यालय जाता है तथा कक्षा में अध्यापक द्‌वारा कही गई बातों का अनुसरण करता है । वह अपने सभी कार्यों को उचित समय पर करता है । वह जब किसी कार्य को प्रारंभ करता है तो उसे समाप्त करने की चेष्टा करता है ।

अनुशासन में रहने वाले विद्‌यार्थी सदैव परिश्रमी होते हैं । उनमें टालमटोल की प्रवृत्ति नहीं होती तथा वे आज का कार्य कल पर नहीं छोड़ते हैं । उनके यही गुण धीरे-धीरे उन्हें सामान्य विद्‌यार्थियों से एक अलग पहचान दिलाते हैं ।

अनुशासन केवल विद्‌यार्थियों के लिए ही आवश्यक नहीं है, जीवन के हर क्षेत्र में इसका उपयोग है लेकिन इसका अभ्यास कम उम्र में अधिक सरलता से हो सकता है । अत: कहा जा सकता है कि यदि विद्‌यार्थी जीवन से ही नियमानुसार चलने की आदत पड़ जाए तो शेष जीवन की राहें सुगम हो जाती हैं ।

ये विद्‌यार्थी ही आगे चलकर देश की राहें सँभालेंगे, कल इनके कंधों पर ही देश के निर्माण की जिम्मेदारी आएगी अत: आवश्यक है कि ये कल के सुयोग्य नागरिक बनें और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन धैर्य और साहस के साथ करें ।

वर्तमान में अनुशासन का स्तर काफी गिर गया है । अनुशासनहीनता के अनेक कारण हैं । बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा के दौर में आज लोग बहुत ही व्यस्त जीवन व्यतीत कर रहे हैं जिससे माता-पिता अपनी संतान को वांछित समय नहीं दे पाते हैं । इसी कारण बच्चों में असंतोष बढ़ता है जिससे अनुशासनहीनता उनमें जल्दी घर कर जाती है ।

इसी प्रकार विद्‌यालय के कुछ छात्र जब परीक्षा या किसी प्रतिस्पर्धा में असफल हो जाते हैं तो वे कुंठा से ग्रसित हो जाते हैं । उनका असंतोष दूसरे विद्‌यार्थियों के अनुशासन पर भी प्रभाव डालता है । देश में बढ़ती हुई जनसंख्या भी अनुशासनहीनता के लिए उत्तरदायी है ।

देश के कुछ विद्‌यालयों की स्थिति ऐसी हो गई है कि 35-40 की क्षमता वाली कक्षाओं में 150 विद्‌यार्थी पढ़ रहे हैं । कोई भी व्यक्ति स्वत: अनुमान लगा सकता है कि एक अध्यापक किस प्रकार सीमित समय में इतने बच्चों को ठीक ढंग से शिक्षा प्रदान कर सकता है ।

यह प्रामाणिक तथ्य है कि अनुशासन के बिना मनुष्य अपने उद्‌देश्य की प्राप्ति नहीं कर सकता है । विद्‌यार्थी जीवन में इसकी आवश्यकता इसलिए सबसे अधिक है क्योंकि इस समय विकसित गुण-अवगुण ही आगे चलकर उसके भविष्य का निर्माण करते हैं । अनुशासन के महत्व को समझने वाले विद्‌यार्थी ही आगे चलकर डॉक्टर, इंजीनियर व ऊँचे पदों पर आसीन होते हैं ।

परंतु वे अनुशासनहीनता के पथ पर चलते हैं तो वे शीघ्र ही कुसंगति के कुचक्र में फँस जाते हैं और सच्चाई तथा न्याय के मार्ग से विचलित हो जाते हैं । फलस्वरूप जीवन में वे ईर्ष्या, लालच, घृणा, क्रोध आदि बुराइयों के अधीन होकर अपना भविष्य अंधकारमय बना लेते हैं ।

अनुशासनहीनता को अच्छी शिक्षा व उचित वातावरण देकर नियंत्रित किया जा सकता है । इसके लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है ताकि विद्‌यार्थी उज्जल भविष्य की ओर अग्रसित हो सकें । अनुशासन में रहने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि राष्ट्र की उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है ।


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