भाषावैज्ञानिकानां मतेन संस्कृतं कासां जननी वर्तते?
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संस्कृत एक भाषा या एक विषय नहीं है बल्कि यह भाषाओं की जननी है। संस्कृत के बिना संस्कृति नहीं रहेगी । हमें आज संस्कृत को बचाने की जरूरत पड़ रही है, जबकि आज से हजारों वर्ष पहले संस्कृत ही एकमात्र भाषा थी । इसी भाषा में वेद, महाग्रंथ लिखे गए । अखिल भारतीय ब्राह्मण विकास मंच के अध्यक्ष नागेंद्र ब्रह्मचारी ने बिहारशरीफ के धनेश्वर घाट मंदिर प्रांगण में रविवार को संस्कृत दिवस के मौके पर ये बातें कहीं । वैद्यनाथ शर्मा ने कहा कि संस्कृत भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की भाषा है । यह परमात्मा प्रदत्त पवित्र भाषा है। संस्कृत में मानव को महामानव बना देने की क्षमता है। बस इसे दैनिक जीवन में उपयोग करने की जरूरत है। श्रीकांत पांडेय ने कहा कि संस्कृत को नजरअंदाज कर हम अपनी ही भारतीय संस्कृति से खिलवाड़ कर रहे हैं। इस मौके पर अच्यूतानंद पांडेय, अवधेश पांडेय, महेश पांडेय, दिनेश पांडेय, जयकांत उपाध्याय व अन्य लोगों ने संस्कृत भाषा को दैनिक जीवन में उपयोग करने की अपील की।