भाषावाद राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती नहीं बने, इसका एक उपाय सुझाएँ।
Answers
Answer:
एक युग था, जब लोग की आन, बान और शान के लिए न्यौछावर हो जाया करते थे। किन्तु आज विघटन, अलगाव तथा देशद्रोह का ऐसा दौर है, जिसमें हम अपनी राष्ट्रीयता को बिल्कुल भुला बैठे हैं? यह हुआ क्या है कि हम चन्द चाँदी के टुकड़ों तथा क्षुद्र स्वार्थो के लिए अपनी राष्ट्रीय पहचान को ही दांव पर लगा बैठे हैं? सवाल उठता है कि कैसे हो गई हमारी राष्ट्रीयता खण्ड-खण्ड?
भारतीय राजनीति का यह एक ऐसा संक्रमण काल है, जब एक साथ अनेक चुनौतियाँ हमारी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के सामने दीवार की तरह आ खड़ी हुई है। हमारा लोकतांत्रिक ढ़ांचा एक ऐसे ढ़र्रे पर चल पड़ा है, निजी स्वार्थो ने अपने पाँव जमा लिए हैं तथा राजनीतिक व्यावसायिकता हावी होने लगी है। वोटों की राजनीति के खेल ने मतदाता को बाँटा है तथा राजनेता का कृत्य दोगला हो जाने से हम चरित्र की एक सही तस्वीर सामान्य जन के सामने प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। इसी के परिणामस्वरूप आज भारतीय समाज में विघटन पनपा है तथा नैतिक मान्यताएँ एवं हमारे सांस्कृतिक आदर्श बिल्कुल मटियामेट हो गए हैं। राजनीतिक चक्र एक ऐसे मोड़ पर हमें ले आया है, जहाँ राष्ट्रीयता गौण हो गई है तथा आर्थिक सफलताएँ बढ़ गई हैं, ऐसी स्थिति में निःसंदेह राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना चुनौती भरा कार्य हो गया है।
भाषा, क्षेत्रीयता, सम्प्रदाय तथा जातीय भेदभाव के नाम पर एक स्पष्ट बाँट पैदा की गई है तथा राजनीतिज्ञों ने चुनाव को जीतना ही जनसेवा का मानदण्ड मान लिया है। राजनीति कोई सेवा का कार्य नहीं, अपितु एक उद्योग बन गई है, जहाँ भ्रष्टाचार का दलदल इतना विषाल होता जा रहा है कि उससे निकलना अब असंभव-सा प्रतीत होने लगा है। आर्थिक संपन्नता तथा वैभवपूर्ण जीवन की लालसा व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य बन गई है और इस मारामारी में हमारी राष्ट्रीय चेतना का लोप होता चला गया है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की जो ऐतिहासिक विरासत हमें मिली थी, उसे हमने पूरी तरह नकार दिया है तथा हमारे जीवन मूल्य आज धूल चाट रहे हैं। इन्सान में चकती जा रही संवेदना भी राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती बनी है। हमारी षिक्षा प्रणाली भी कम दोषी नहीं है।
आज के बालक यही नहीं जान पाते कि हमें हमारी आजादी कैसे मिली थी? नैतिक शिक्षा के अभाव में चरित्र निर्माण का कार्य नहीं हो पा रहा तथा ले-देकर सामान्य ज्ञान के सहारे शिक्षा पाठ्यक्रमों का निर्धारण किया जाता है। बालपन में ही जब राष्ट्रीय भावनाओं का संचार होगा, तब ही वह अपने राष्ट के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को समझ सकेगा। शिक्षा व्यवस्था में दोष एक तरह का ही नहीं, अपितु कई तरह से आया है। गुरू-शिष्य की पारम्परिक व्यवस्था बिगड़ गई है, तो गुरूजनों के प्रति छोटों का आदर भाव वैसे ही घट गया है। 21वीं सदी की ओर दौड़ते हमारे देश को नैतिक मूल्यों की आज भी उतनी ही जरूरत है, जितना आजादी से पहले थी। माता-पिता के प्रति आदर भाव का दायरा सिमटता चला गया है तथा आदर्ष जीवन व्यवस्था छिन्न-भिन्न हुई है।
भारत हमारा राष्ट्र है और राष्ट्र सदैव प्राणों से भी प्यारा होता है। इस प्राणों से भी प्यारे भारत के लिए प्राण उत्सर्ग करने की भावना सदैव प्रबल रहनी चाहिए, ताकि इसकी खण्डता तथा एकता को अक्षुण्य बनाए रखा जा सके। देष ही नहीं होगा तो हमारे अपने अस्तित्व का अर्थ क्या है? इसलिए यह समय एक ऐसे आत्मचिन्तन का है, जब भारतीयता से जुड़े मानव मूल्यों के आधार पर हम स्वर्ग समान भारत को निर्माण कर सकें। उन लोगों को पहचान कर राष्ट्रीय हालात को जान लेना चाहिए, जिनकी वजह से देष पर विपदा के बादल टूट पड़ते हैं। माहौल अब फिर दूषित हो रहा है, उसे संवारने के लिए भारतीय जीवन मूल्यों की स्थापना आज की पहली आवष्यकता है। जितनी भी समस्याएँ सामने आएंगी वे हमारी सिद्धान्तप्रियता तथा नैतिक मान्यताओं के सामने फिर भला क्या टिक पाएंगी। इसलिए राष्ट्रीय एकता की चुनौती तो बड़ी है। लेकिन वह इतनी मुष्किल भी नहीं है कि उसका समाधान न हो सके।
work and life opinion
Related Stories
कंपनी के वैकेशन शेड्यूल को सही करें
कंपनी के वैकेशन शेड्यूल को सही करें
सकारात्मक ऊर्जा के अक्षय स्रोत हैं हमारे तीर्थ
बुजुर्ग बोझ नहीं, अनुभव का खजाना हैं
वुमन एंटरप्रेन्योर्स के लिए वर्क-लाइफ बैलेंस है जरूरी
जनसंख्या वृद्धि गंभीर समस्या
HomeCareersAbout UsNewsroomArchivePrivacy Policy© 2019 Patrika Group
Explanation:
Answer:
Electronic Voting Machines (EVMs) were used on an experimental basis for the first time in elections to 16 Assembly constituencies in Madhya Pradesh (5), Rajasthan (5) and Delhi (6) held in November, 1998. EVMs can record a maximum of 3,840 votes and can cater to a maximum of 64 candidates