Hindi, asked by ddhakad, 1 year ago

भाषायी कौशल का विकास

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Answered by Khushiakherajot
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apne shabdon m nikhar lane ko aur bhasha m ashudhiyon ka na hona hi bhashyi kaushal hota h. iska Vikas hi bhashyi kaushal ka Vikas hota h
Answered by devindersaroha43
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Answer:

Explanation:

भाषा कौशल से तात्पर्य है|भाषा के ठीक तरह से काम करने की योग्यता या सामर्थ्य हासिल करना । अर्थात् अध्येता भाषा के चारों कौशलों सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना में पूर्ण रूप से दक्षता हासिल कर सके। अध्येता के भाषा सीखने पर यदि उसका भाषा के उपरोक्त चारों कौशल पर पूर्णता अधिकार ना हो तब भाषा कौशल अधूरा रह जाता है । अध्यापक को चाहिए कि वह अध्येता को भाषा शिक्षण के दौरान भाषा के चारों कौशलों का सामान रूप से विकास करवाए ।

'व्यक्ति की संप्रेषण की सक्षमता भाषा कौशलों की दक्षता पर ही निर्भर होती है। भाषा की प्रभावशीलता का मानदंड बोधगम्यता होती है। जिन भावो एवं विचारों की अभिव्यक्ति करना चाहते है उन्हें कितनी सक्षमता से बोधगम्य कराते है यह भाषा कौशलों के उपयोग पर निर्भर होता है।'[[१]

हमारा देश बहुभाषी देश है| अनेक क्षेत्रीय बोलियां और भाषाएं यहां बोली जाती हैं| भाषा न केवल शिक्षा प्राप्ति का साधन है बल्कि विचार ,विनिमय ,प्रशासन ,व्यापार ,संचार, पर्यटन ,रोजगार आदि के लिए भी भाषा शिक्षण किया जाता है|

भाषा शिक्षण को दो भागों में बाटा गया है|

1.प्रधान कौशल

2.गौण कौशल

1.प्रधान कौशल :

भाषा का सर्वप्रथम कार्य संप्रेषण करना ही है। यह संप्रेषण भाषा के बिना अधूरा है|संप्रेषण के लिए हमें भाषा के उच्चरित रूप की ही आवश्यकता होती है| भाषा का उच्चरित भाषा का वह रूप है जिसे एक निरीक्षण व्यक्ति भी प्रयोग करता है| इसलिए इससे संबंधित कौशल ही प्रधान कौशल कहे जाते हैं| इसमें निम्नलिखित दो कौशल आते हैं -

1. सुनना

2. बोलना

2.गौण कौशल :

बालक अपनी प्रारंभिक भाषा परिवार और समाज से सीखता है| परिवार और समाज ही भाषा सीखने का उसका प्रथम स्कूल होता है| उसके बाद वह विद्यालय जाकर लिखना-पढ़ना सीखता है| इस प्रकार के भाषा शिक्षण को गौण कौशल के अंतर्गत परिभाषित किया गया है| इसके दो रूप हैं-

1. पढ़ना

2. लिखना

भाषा कौशल- श्रवण, भाषण ,वाचन, लेखन-

1.श्रवण कौशल (Listening Skill):

'श्रवण' शब्द 'श्रु' धातु से बना है जिसका संबंध 'सुनने' और 'अधिगम' करना आदि से है । 'श्रवण' अंग्रेजी के शब्द 'Listening' शब्द का पर्याय है । 'श्रवण' केवल ध्वनियों को सुनना भर नहीं है बल्कि उन ध्वनियों को सुनकर उसका अर्थ निकालने, सुनी हुई बातों पर चिंतन मनन करने और अर्थ की प्रतिक्रिया देने से है । श्रवण कौशल के लिए मस्तिष्क की एकाग्रता एवं इंद्रियों का संयम होना अत्यंत आवश्यक है । बालक के जन्म लेने के उपरांत उसकी प्रारंभिक शिक्षा उसकी श्रवण शक्ति पर निर्भर करती है ।यदि छात्र की श्रवण इन्द्रियों में दोष है, तो वह न भाषा सीख सकता है और न अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कर सकता है। अत: उसका भाषा ज्ञान शून्य के बराबर ही रहेगा। बालक सुनकर ही अनुकरण द्वारा भाषा ज्ञान अर्जित करता है|

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