भूषण की राष्ट्रीय भावना फो
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रीतिकालीन कवियों में भूषण विशिष्ट स्थान के अधिकारी हैं भूषण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने घोर विलासिता के युग में शिवाजी एवं छत्रसाल की वीरता, शौर्य एवं पराक्रम का वर्णन करके सुप्त राष्ट्रीयता की भावना जाम्रत किया और जन-जन में वीरता के भावीं का संचार किया।
महाकवि भूषण (१६१३ - १७०५) रीतिकाल के तीन प्रमुख हिन्दी कवियों में से एक हैं, अन्य दो कवि हैं बिहारी तथा केशव। रीति काल में जब सब कवि शृंगार रस में रचना कर रहे थे, वीर रस में प्रमुखता से रचना कर भूषण ने अपने को सबसे अलग साबित किया। 'भूषण' की उपाधि उन्हें चित्रकूट के राजा रूद्रसाह के पुत्र हृदयराम ने प्रदान की थी। ये मोरंग, कुमायूँ, श्रीनगर, जयपुर, जोधपुर, रीवाँ, छत्रपती शिवाजी महाराज और छत्रसाल आदि के आश्रय में रहे, परन्तु इनके पसंदीदा नरेश छत्रपति शिवाजी महाराज और बुंदेला थे। महाकवि भूषण का जन्म संवत 1670 तदनुसार ईस्वी 1613 में हुआ। वे मूलतः टिकवापुर गाँव के निवासी थे जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के घाटमपुर तहसील में पड़ता है। उनके दो भाई चिन्तामणि और मतिराम भी कवि थे। उनका मूल नाम क्या था, यह पता नहीं है। 'शिवराज भूषण' ग्रंथ के निम्न दोहे के अनुसार 'भूषण' उनकी उपाधि है जो उन्हें चित्रकूट के राज हृदयराम के पुत्र रुद्रशाह ने दी थी। कुल सुलंकि चित्रकूट-पति साहस सील-समुद्र।
कवि भूषण पदवी दई, हृदय राम सुत रुद्र। कहा जाता है कि भूषण कवि मतिराम और चिंतामणि के भाई थे। एक दिन भाभी के ताना देने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और कई आश्रम में गए। यहां आश्रय प्राप्त करने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज के आश्रम में चले गए और अन्त तक वहीं रहे। पन्ना नरेश छत्रसाल से भी भूषण का संबंध रहा। वास्तव में भूषण केवल छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रसाल इन दो राजाओं के ही सच्चे प्रशंसक थे। उन्होंने स्वयं ही स्वीकार किया है। और राव राजा एक मन में न ल्याऊं अब। साहू को सराहों कै सराहौं छत्रसाल को। संवत 1772 तदनुसार ईस्वी 1715 में भूषण परलोकवासी हो गए।