Social Sciences, asked by aadityaraj0219, 5 months ago

भीषण कर्म कितने किसे बताया गया है​

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Answered by negiabhishek236
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भीषण कर्म कितने किसे बताया गया है

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gita is the right answer

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Answered by priyamdubey92
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कर्म हिंदू धर्म की वह अवधारणा है, जो एक प्रणाली के माध्यम से कार्य-कारण के सिद्धांत की व्याख्या करती है, जहां पिछले हितकर कार्यों का हितकर प्रभाव और हानिकर कार्यों का हानिकर प्रभाव प्राप्त होता है, जो पुनर्जन्म का एक चक्र बनाते हुए आत्मा के जीवन में पुन: अवतरण या पुनर्जन्म[1] की क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं की एक प्रणाली की रचना करती है। कहा जाता है कि कार्य-कारण सिद्धांत न केवल भौतिक दुनिया में लागू होता है, बल्कि हमारे विचारों, शब्दों, कार्यों और उन कार्यों पर भी लागू होता है जो हमारे निर्देशों पर दूसरे किया करते हैं। [2] जब पुनर्जन्म का चक्र समाप्त हो जाता है, तब कहा जाता है कि उस व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है, या संसार से मुक्ति मिलती है।[3] सभी पुनर्जन्म मानव योनि में ही नहीं होते हैं। कहते हैं कि पृथ्वी पर जन्म और मृत्यु का चक्र 84 लाख योनियों में चलता रहता है, लेकिन केवल मानव योनि में ही इस चक्र से बाहर निकलना संभव है।

किये गए कृत्यों के निर्णायक प्रतिफल के सन्दर्भ में आत्मा के देहांतरण या पुनर्जन्म का सिद्धांत ऋगवेद में नहीं मिलता है।"कर्म" का शाब्दिक अर्थ है "काम" या "क्रिया" और भी मोटे तौर पर यह निमित्त और परिणाम तथा क्रिया और प्रतिक्रिया कहलाता है, जिसके बारे में हिंदुओं का मानना है यह सभी चेतना को नियंत्रित करता है। कर्म भाग्य नहीं है, आदमी मुक्त होकर कर्म करता जाए, इससे उसके भाग्य की रचना होती रहेगी. वेदों के अनुसार, यदि हम अच्छाई बोते हैं, हम अच्छाई काटेंगे, अगर हम बुराई बोते हैं, हम बुराई काटेंगे. संपूर्णता में किया गया हमारा कार्य और इससे जुड़ी हुई प्रतिक्रियाएं तथा पिछले जन्म का संबंध कर्म से है, ये सभी हमारे भविष्य को निर्धारित करते हैं। कर्म की विजय बौद्धिक कार्य और संयमित प्रतिक्रिया में निहित है। सभी कर्म तुरंत ही पलटकर वापस नहीं आते हैं। कुछ जमा होते हैं और इस जन्म या अन्य जन्म में अप्रत्याशित रूप से लौट कर आते हैं। हम चार तरीके से कर्म करते हैं:विचारों के माध्यम से

शब्दों के माध्यम से

क्रियाओं के माध्यम से जो हम स्वयं करते हैं।

क्रियाओं के माध्यम से जो हमारे निर्देश पर दूसरे करते है।

वह सब कुछ जो हमने कभी सोचा, कहा, किया या कारण बना; ठीक वैसा ही होता हैं जैसा कि हम उस समय सोचते हैं, बोलते हैं, करते हैं; यही कर्म हैं।

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