बहुत से मनुष्य सोच कर कि हमें सफलता नहीं मिलेगी देव हमारी विपरीत है अपनी सफलता को अपने ही व्यवस्था को पीछे धकेल दिए हैं उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय क्यों यदि हमारा मंचन का निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा क्योंकि सफलता की कुंजी है
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