Hindi, asked by manojip02, 4 months ago

बहुत से मनुष्य यह सोच-सोचकर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, दैव हमारे विपरीत है,अपनी सफलता को
अपने ही हाथों पीछे धकेल देते हैं। उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता
और विजय कहाँ? यदि हमारा मन शंका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा,
प्रश्न2.
निम्नलिखित गद्यांशको पढ़कर उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति की कुंजी तो अविचल श्रद्धा ही है।
उपर्युक्त गद्यांश भाषा भारती कक्षा 8 के किस पाठ से लिया गया है?
उत्तर​

Answers

Answered by bhatiamona
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बहुत से मनुष्य यह सोच-सोचकर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, दैव हमारे विपरीत है,अपनी सफलता को अपने ही हाथों पीछे धकेल देते हैं। उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहाँ? यदि हमारा मन शंका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा।

निम्नलिखित गद्यांशको पढ़कर उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति की कुंजी तो अविचल श्रद्धा ही है।

उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ यह है कि सफलता पाने के लिए, किसी लक्ष्य पर विजय प्राप्त करने के लिए, अपने स्वयं की उन्नति करने का सूत्र आत्मविश्वास और अधिक श्रद्धा है, यदि हमें हमारे अंदर पर पूरा विश्वास है और हमारी अपने लक्ष्य के प्रति श्रद्धा है, तो हमें सफलता पाने से कोई नहीं रोक सकता।

उपर्युक्त गद्यांश भाषा भारती कक्षा 8 के किस पाठ से लिया गया है?

उपर्युक्त गद्यांश भाषा भारती कक्षा 8 के 'आत्मविश्वास' नामक पाठ से लिया गया है।

उपयुक्त गद्यांश के माध्यम से यह समझाने का प्रयत्न किया गया है कि सफलता पाने के लिए भाग्य नहीं बल्कि कर्म महत्वपूर्ण होता है। सफलता पाने के लिए शंका और निराशा नहीं बल्कि आशा और आत्मविश्वास चाहिये। भाग्य पर विश्वास रखने वाले और निराशा से भरे हुए व्यक्ति को सफलता नहीं प्राप्त होती बल्कि जिसके मन में आत्मविश्वास है, जिसे आशा है, जो कर्म में विश्वास रखता है वह ही सफल बन सकता है ।

#SPJ3

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