Hindi, asked by buddhiprakash27, 4 months ago

बहुत से मनुष्य यह सोच-सोचकर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, दैव हमारे विपरीत है,अपनी सफलता को
अपने ही हाथों पीछे धकेल देते है। उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता
और विजय कहाँ? यदि हमारा मन शंका और निराशा से भरा है तो हमारेकाों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा,
क्योंकि सफलताकी,विजयकी,उन्नतिकीकुंजी तो अविचल श्रद्धाहीहै।
उपर्युक्त गद्यांश भाषा भारती कक्षा 8 के किस पाठ से लिया गया है ?​

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Answered by jamravering91
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Answer:

yeh passage hindi ke chapter 2 ka hai

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