Hindi, asked by salamedurga09, 3 months ago

बहुत से
मनुष्य यह सोच-सोचकर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, देव हमारे विपरीत है, अपनी सफलता को
अपने ही हाथों पीछे धकेल देते हैं। उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता
और विजय कहाँ? यदि हमारा मन शंका और निराशा से भरा है तो हमारे कार्मा का परिचय भी निराशा जनक ही होगा,
क्योंकि सफलता की,विजय की, उन्नति की कुंजी तो अविचल श्रद्धा ही है।
उपर्युक्त गद्यांश भाषा भारतीकक्षा के किस पाठ से लिया गया है?
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Answered by prajapatibrijesh5785
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Answer:

मनुष्य यह सोच-सोचकर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, देव हमारे विपरीत है, अपनी सफलता को

अपने ही हाथों पीछे धकेल देते हैं। उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता

और विजय कहाँ? यदि हमारा मन शंका और निराशा से भरा है तो हमारे कार्मा का परिचय भी निराशा जनक ही होगा,

क्योंकि सफलता की,विजय की, उन्नति की कुंजी तो अविचल श्रद्धा ही है।

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