बहुत सारे विद्वानों ने स्वतंत्रता के बाद के महीनों को गाँधीजी के जीवन का ' श्रेष्ठतम क्षण ' क्यों कहा है ?
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एक लम्बे संघर्ष के पश्चात् 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतन्त्रता मिली परन्तु यह स्वतन्त्रता एक अकल्पनीय कीमत पर मिली अर्थात् भारत का विभाजन हो गया । इसके साथ देश में जगह - जगह पर हिन्दुओं और मुसलमानों में दंगे फसादों में असंख्य लोगों की मृत्यु हुई तथा लोगों को घर - बार छोड़ना पड़ा ।
⭐ऐसी परिस्थितियों में गाँधी जी और कांग्रेस ने शान्ति की स्थापना के लिए निम्नलिखित प्रयत्न किए :
(⭐) 15 अगस्त 1947 को गाँधी जी ने 24 घन्टे का उपवास रखा
(⭐) सितम्बर और अक्तूबर में पीड़ितों को सांत्वना तथा हिन्दू - मुसलमानों और सिखों को भाई - चारे और शान्ति से रहने का आग्रह करते रहे ।
(⭐) कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों का प्रस्ताव पास किया तथा आश्वासन दिया कि भारत एक लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होगा जिसमें अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जाएगी ।
(⭐) बंगाल के पश्चात् गाँधी जी दिल्ली आए परन्तु यहाँ पर उनकी प्रार्थना सभाएँ शरणार्थियों की आपत्तियों के कारण अस्त - व्यस्त होने लगीं ।
(⭐) 20 जनवरी को गाँधी जी पर हमला हुआ परन्तु वे अविचलित रहे । 26 जनवरी को उन्होंने फिर अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा का आश्वासन दिया । नि : संदेह गाँधी जी के जीवन में यह क्षण श्रेष्ठतम क्षण था ।