Hindi, asked by mansimishra08082006, 5 days ago

भादो की वह अँधेरी अधरतिया अभी थोड़ी ही देर पहले मुसलधार वर्षा खत्म हुई है। बादलों की गरज, बिजली की तड़प में आपने कुछ नहीं सुना हो, किंतु अब झिल्ली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकतीं। उनकी खैंजडी डिमक डिमक बज रही है और वे गा रहे हैं- "गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना!"

हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है, वह अकेली है. चमक उठती है, चिहुँक उठती है। उसी भरे बादलों वाले भादो की आधी रात में उनका यह गाना अंधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौका देता? अरे, अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोविन भगत का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है। तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा! la arth batayen plea its urgent

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Answered by franktheruler
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अर्थ स्पष्ट कीजिए

1. भादो की वह अँधेरी अधरतिया अभी थोड़ी ही देर पहले मुसलधार वर्षा खत्म हुई है। बादलों की गरज, बिजली की तड़प में आपने कुछ नहीं सुना हो, किंतु अब झिल्ली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकतीं। उनकी खैंजडी डिमक डिमक बज रही है और वे गा रहे हैं- "गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना!

  • संदर्भ : प्रस्तुग गद्यांश बाल गोबिन भगत " पाठ से लिया गया है, जिसके लेखक है

राम वृक्ष बेनीपुरी।

  • प्रसंग: इन पंक्तियों में लेखक ने बाल गोबिन भगत के जीवन के गुणों का उल्लेख किया है।
  • व्याख्या : लेखक बताते है कि भादों की अंधेरी रातों में बाल गोबिन भगत जागे हुए है, वे ईश्वर के गीत गा रहे है। वे ईश्वर भक्ति में मग्न है जबकि सारी दुनिया सोई हुई है। अपने गीतों के माध्यम से वे लोगों को ईश्वर का स्मरण कराते है। आसमान में बिजली कड़क रही है।

वे कहते है कि पिया तो गोद में है लेकिन वह

नहीं समझती ,वह चमक उठती है। इसका

तात्पर्य यह है कि आत्मा तथा परमात्मा दोनों

सदा साथ ही रहते है।

2. हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है, वह अकेली है. चमक उठती है, चिहुँक उठती है। उसी भरे बादलों वाले भादो की आधी रात में उनका यह गाना अंधेरे में अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह किसे न चौका देता? अरे, अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोविन भगत का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है। तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा!

  • संदर्भ : प्रस्तुग गद्यांश बाल गोबिन भगत " पाठ से लिया गया है, जिसके लेखक है

राम वृक्ष बेनीपुरी।

  • प्रसंग: इन पंक्तियों में लेखक ने बाल गोबिन भगत के द्वारा गाए गए गीतों का उल्लेख किया है कि कैसे वे प्रभु की स्तुति करते है।
  • व्याख्या : अंधेरी रात है, जब सारा संसार गहरी नींद में सोया है , उस वक्त बाल गोबिन भगत ईश्वर की स्तुति कर रहे है। अंधेरी रात में केवल उनके गीतों का स्वर सुनाई दे रहा है। वे कह रहे है कि है मुसाफिर तेरी गठरी में लागा चोर,मुसाफिर तू जाग अर्थात पांच विकार रूपी चोर जीवन रूपी गठरी को चुराने का प्रयत्न कर रहे है और तू सोया हुआ है, अब जाग जा।

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