Hindi, asked by new172, 7 months ago

भेदभाव के कारण आजकल हमारे समाज में क्या नुकसान हो रहा है?
व्याख्या करो​

Answers

Answered by shivam77332
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Answer:

I hope it is correct

Explanation:

मनोरंजन में लैंगिक भेदभाव

अगर बात करें मनोरंजन के क्षेत्र की तो अभिनेत्रियों को भी इस भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। अक्सर फिल्मों में अभिनेत्रियों को मुख्य नहीं समझा जाता और उन्हें पारिश्रमिक भी अभिनेताओं की तुलना में कम मिलता है। इस समस्या पर बहुत सी अभिनेत्रियों ने अपनी नाराज़गी भी जाहिर की है। अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा ने भी इस भेदभाव पर कहा कि ‘आजकल की महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर काफी मुखर हैं और मैं सिर्फ फिल्म उद्योग में ही बदलाव नहीं चाहती, बल्कि खेल या व्यापार या किसी भी अन्य पेशे में महिलाओं के लिए समान वेतन चाहती हूं|’मनोरंजन जगत के अलावा भी ऐसे बहुत से क्षेत्र है जहाँ महिलाएं असमान वेतन की समस्या से जूझ रही हैं।

समानता एक सुंदर और सुरक्षित समाज की वो नींव है जिसपर विकासरूपी इमारत बनाई जा सकती हैं।

मजदूरी क्षेत्र भी नहीं है अछूता

गौरतलब है कि जब भी कहीं सड़कों का निमार्ण-कार्य हो रहा होता है तो चेतावनी के तौर पर ये लिखा होता है कि ‘ Men at Work’. हालांकि उस निर्माण कार्य में महिलाएं भी कार्य कर रही होती हैं। फिर भी हम महिलाओं के काम के महत्व को बहुत ही सफाई से नकार देते हैं। इसी तरह अगर हम उन महिलाओं की बात करें जो कपड़े सिलाई का काम करती है तो वे भी लैंगिक भेदभाव का शिकार होती है। एक तरफ तो उन्हें दर्जी के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है| वहीं दूसरी तरफ पुरुषों के मुकाबले कम पारिश्रमिक भी दिया जाता हैं।

खेल की दुनिया में भी भेदभाव का बीज

गाँव हो या शहर काम से लेकर व्यवहार तक समाज का भेदभावपूर्ण रवैया हर दूसरी जगह देखा जा सकता है| अगर हम खेलों की बात करें तो वहाँ भी भेदभाव कुंडली मारकर बैठा हुआ है। खेलों में मिलने वाली ईनामी राशि पुरुष खिलाड़ियों की बजाय महिला खिलाड़ियों को कम मिलती हैं। चाहे कुश्ती हो या क्रिकेट हर खेल में भेदभाव का समीकरण काम करता है| इसके साथ ही, पुरूषों के खेलों का प्रसारण भी महिलाओं के खेलों से ज्यादा है|

आज हम विश्व स्तर पर सतत विकास में लैंगिक भेदभाव को दूर करने की बात कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ लैंगिक भेदभाव की जड़ें सामाजिक और राजनीतिक कारणों से मजबूती पकड़ रही हैं। ऐसे में हमें सोचना होगा कि कैसे हम लैंगिक समानता की मंजिल तक पहुँच कर विश्व में सतत विकास का सपना पूरा कर पाएंगे? या फिर एकबार लैंगिक असामनता हमारे लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगी| एक शांतिपूर्ण और सुंदर विश्व की कल्पना बिना लैंगिक समानता के नहीं की जा सकती और जब तक लैंगिक समानता नहीं होगी तब तक एजेंडा 2030 को पूरा करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन हैं।

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